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पाण्डवपुराणम्
निवृत्तचिन्तयद्धि मे मनोवृत्ति सुखातिगाम् । मिथ्यास्तु दुःकृतं मेऽद्य संचितं दुष्टचेतसा ।। कृत्वैवं परमं घोरं तपः संन्यस्य सा क्रमात् । मुक्त्वा प्राणान्गता स्वर्गेऽच्युते च्युतशरीरिका सोमभूतिचरस्याभूत्सुरस्य वरवल्लभा । देवी तु पञ्चपञ्चाशत्पल्यायुः स्थितिसंगिनी ॥७२ सासुरी ते सुराः सर्वे संचरन्तः सुखेच्छया । चिरं तत्र स्थिता भेजुः प्रवीचारं च मानसम् ॥ अथ हास्तिपुरेशस्य श्रीषाण्डोः पृथिवीपतेः । कुन्त्यां मयां च ते तस्माच्च्युताः सत्पुत्रतामिताः सोमदती दरातीतो यः सोऽभूस्त्वं युधिष्ठिरः । सोमिलो योऽभवद्भाता सोऽभूद्भीमो मयातिगः सोमभूतिरभूद्भव्योऽर्जुनो जितविपक्षकाः । त्रिजगत्प्रथिता यूयं भ्रातरस्त्रय उन्नताः ॥ ७६ यो धनश्रीचरः सोऽभून्मद्रीजो नकुलो महान् । यो मित्रश्रीचरः सोयं सहदेवस्तवानुजः || सुकुमारीचरा यासीत्सुता काम्पिल्यभूपतेः । सुता दृढरथायाश्च द्रौपदी द्रुपदस्य सा ॥७८
अज्ञानीने निदान किया अर्थात् मैं दुर्गंधा और असुंदर हूं, मुझे इस वेश्याके समान सौन्दर्य और वैभव प्राप्त हो ऐसा विचार उस अज्ञानी आर्यिकाने किया परंतु उस विचारसे अपनी मनोवृत्तिको जो कि सच्चे सुखसे दूर थी, धिक्कारा। मैंने जो दुष्ट मनसे पाप संचित किया है। वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो । इस प्रकार परम घोर तप उसने किया । तदनंतर आयुष्य समाप्तिके समय क्रमसे उसने कषाय और शरीरका त्याग किया। शरीर छूटनेसे प्राणोंको छोडकर वह अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न हुई। ।। ६८-७१ ।।
[ दुर्गंधा अच्युत स्वर्गमें देवी हुई ] जो पूर्वभवमें सोमभूति ब्राह्मण था ऐसे अच्युत स्वर्गके सामानिक देवकी वह दुगधा मरकर अतिशय प्रिय देवी हुई। उसकी आयु पचपन पल्यकी थी । उस स्वर्ग में स्थित वह देवांगना और वे पांच सामानिक देव सुखेच्छासे विहार करते हुए मानसिक मैथुन सुख भोगते थे || ७२–७३ ॥
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[ देवांगना द्रौपदी हुई ] तदनंतर वे सोमदत्तादिक अच्युत स्वर्ग से च्युत होकर हस्तिनापुर नगर के स्वामी राजा पाण्डुकी कुन्ती और मद्री रानीमें सत्पुत्रत्वको प्राप्त हुए। पूर्वभवमें जो निर्भय सोमदत्त ब्राह्मण था वह तू इस भवमें युधिष्ठिर हुआ है । हे युधिष्ठिर, पूर्वभवमें जो सोमिल ब्राह्मण तेरा भाई था वह अब तेरा निर्भय भीम नामक भाई हुआ है । भव्य सोमभूति ब्राह्मण जिसने शत्रुओंको जीता है ऐसा अर्जुन नामक तेरा भाई हुआ है। आप तीनों भाई त्रैलोक्य में प्रसिद्ध और उन्नतिशाली हैं। जो पूर्वभवमें धनश्री ब्राह्मणी थी वह मद्री रानीसे उत्पन्न हुआ महान् शूर नकुल है। जो पूर्वभवमें मित्रश्री ब्राह्मणी थी वह अब तेरा भाई सहदेव हुआ है। जो पूर्वभवमें सुकुमारी थी ( दुर्गंधा ) वह कांपिल्प नगरके राजा द्रुपद और रानी दृढरथा इन दोनों की पुत्री द्रौपदी हुई ॥ ७४-७८ ॥
१ निर्वृता ।
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