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________________ एकार्विन पर्व ४५१ तदवाच्यां वरं क्षेत्रं भारतं भुवनोत्तमम् । चापाकारं कलाकीर्ण भाति पद्खण्डशोभितम् ।। कुरुजाङ्गलनामास्ति नीवृत्तत्र मनोहरः । कुरुभूमिसमो भोगै_जिष्णुभूरिभूपतिः॥४५ .. हस्तिनागपुर तत्र हस्तिनां हितैर्वरम् । सुरापगापरिक्लृप्तपरिखं खल विद्यते ॥ ४६ युधिष्ठिराभिधस्तत्र भूपो भूरिभयापहः । समृद्धो धरणी धर्तु विद्यते कौरवाग्रणीः ॥४७ पार्थः सार्थकनामाभूत्तभ्राता भुवि विश्रुतः। तत्पत्नी द्रौपदी पट्टे लिखितेयं सुरूपिणी॥ रामासुखसमीहा चेत्तवैनां कुरु हृद्गताम् । विनानया प्रभो विद्धि जीवितं तेऽप्यजीवितम् ॥ तद्रूपं च वरे पट्टे विद्युत्कीर्णं सुकर्णभृत् । तुभ्यं यद्रोचते भूप तत्कुरुष्व न चान्यथा॥५० इत्युक्त्वास्मिन्गते व्योम्नि तद्रूपाहतमानसः। तत्कामिनी स्मरंश्चित्ते क्षणं दुःखी नृपोऽभवत्।। वनमित्वा तदा भूपो मन्त्राराधनतत्परः। संगमाख्यं सुरं शीघं साधयामास संगदम्॥५२ साधितः संगमः प्राप्तो नृपं प्रणयसंगतम् । प्राह देहि ममादेशं त्वदिष्टं हृष्टिकारकम् ॥५३ तदाभाणीन्नृपस्तुष्टो निर्जरानय मानिनीम् । द्रौपदी रूपसंपन्नां संप्राप्तपरमोदयाम् ॥५४ . शोभित भारतक्षेत्र शोभता है। उसमें कुरुजांगल नामका मनोहर देश है। वह भोगोंके पदार्थ देने. वाला होनेसे उत्तरकुरु, देवकुरुभोगभूमिके समान शोभनेवाला है और अनेक राजाओंसे मनोहर दीखता है। उस देशमें हाथियोंकी गजनाओंसे सुंदर हस्तिनागपुर नामक शहर है। निश्चयसे उसकी खाई गंगानदीसे बनाई गई है। वहां युधिष्ठिर नामका राजा है वह कौरववंशका अगुआ है। वह अतिशय भयको दूर करनेवाला है। वह पृथ्वीको धारण करनेमें समृद्ध-समर्थ है ॥ ४४-- ४७ ॥ युधिष्ठिरराजाके भ्राताका नाम 'पार्थ ' है वह अन्वर्थ नामका धारक है। और इस भूतलमें प्रसिद्ध है। उसकी पत्नीका नाम द्रौपदी है। वही स्वरूप-सुंदरी इस पट्टमें लिखी है। हे राजा, स्त्रीके सुखकी यदि तुझे इच्छा है तो तू इसे अपने हृदयमें रख । हे राजन् , इसके विना तेरा जीवित भी अजीवितके समान है अर्थात् इसके विना जीना मरणके समान है। हे उत्तम कर्णको धारण करनेवाले राजन् , उसीका इस सुंदर पट्टमें बिजली के समान रूप फैला हुआ है। प्रकाशमय रूप है। अब तुझे जैसा रुचता है वैसा कर मैंने जो कहा है वह अन्यथा-असत्य नहीं है " ॥ ४८५० ॥ ऐसा बोलकर नारद आकाशमें चले गये । द्रौपदीके रूपसे व्याकुल चित्तवाला पद्मनाभराजा मनमें उस स्त्रीको स्मरण करता हुआ अतिशय दुःखी हुआ ॥ ५१ ॥ - [कामुक पद्मनाभकी द्रौपदीसे प्रार्थना] राजा वनमें जाकर मंत्राराधना करनेमें तत्पर हो गया। उसने स्त्रीका संग देनेवाले संगम नामक देवको शीघ्र साध्य कर लिया । वश किया हुआ संगमदेव प्रेमसहित राजाके पास आगया और तुझे जो इष्ट और आनंदका कारण हो, मुझे आज्ञा दे। उस समय आनंदित हुआ राजा कहने लगा, कि- “जिसे उत्तम वैभव प्राप्त हुआ है, तथा जो रूपसंपन्न है, ऐसी द्रौपदीको यहां लाओ" उसका भाषण सुनकर प्रेम करनेवाला, चचल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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