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स पर्व
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तमभ्येत्य स्थितास्तत्र कौन्तेयास्तेन मानिताः । कुर्वन्तः कुशलाः स्वं स्वं नियोगं निर्मलाशयाः।। विज्ञानिनः स्वविज्ञानं दर्शयन्तः सुदर्शनाः । सुघटाय विराटाय धर्ममार्गरताय च ॥ २४३ मासा द्वादश तेषां हि गताः सत्कार्यकारिणाम् । भूपप्रियां च पाञ्चाली स्तुवन्त्यस्थात्सुदर्शनाम् ॥ २४४
चूलिकायामथो पुर्यां चूलिकोऽभून्महीपतिः । विकचाख्या प्रिया तस्य विकसनेत्रपङ्कजा ।। कीचकाद्याः सुतास्तस्य शतं जाता गुणोन्नताः । कदाचित्कीच कोऽप्यागाद्विराटे स्वसुसंनिधिम् ददर्श द्रौपदीं तत्र नृपशालककीचकः । पुलोमजामिवोत्तुङ्गां साक्षाल्लक्ष्मीमिवापराम् ॥२४७ भोजने शयने याने ततः प्रभृति कीचकः । विरक्तोऽभूत्तदालापदर्शने दत्तचित्तकः ॥२४८ यत्र यत्र पदं दत्ते पाञ्चाली तत्र तत्र सः । अटन्सुचाटुकारांश्च प्रयुङ्क्ते तां स्मरार्दितः ॥ स्फुरिताधरया पार्थपत्न्या निर्भत्सितः स हि । न युक्तमिति वादिन्या कटुकाक्षर भाषणैः ॥ भाषमाणं पुनश्चेत्थं लम्पटं कीचकं प्रति । सावादीत्कृतकोपेन निष्ठुराक्षरभाषिणी ।। २५१ महापराक्रमाक्रान्ता गन्धर्वाः सन्ति पश्च मे । ते ज्ञास्यन्ति च चेदेवं त्वां नेष्यन्ति यमालयम्
वाली द्रौपदी विराटराजाकी पत्नीकी स्तुति करती हुई काल बिताने लगी ॥ २४४ ॥
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[ कीचक द्रौपदीपर मोहित हुआ ] चूलिका नामक नगरीमें चूलिक नामका राजा राज्य करता था। उसकी जिसकी आँखें प्रफुल्ल कमलके समान थीं ऐसी विकचा नामक पत्नी थी। चूलिक राजाको गुणोंसे उन्नत ऐसे कीचकादिक सौ पुत्र हुए थे । किसी समय कीचक विराटदेश में अपनी बहिन सुदर्शनाके पास गया था। कीचक विराटराजाका साला था । उसने पुलोमजाइंद्राणी के समान श्रेष्ठ, तथा मानो साक्षात् दुसरी लक्ष्मी हो ऐसी द्रौपदीको वहां देखा । तबसे भोजन, सोना, यान, वाहनादिकोंसे वह विरक्त हुआ । द्रौपदीका भाषण सुनना, उसका रूप देखना इन कार्यों में उसका मन लगा। उसने इन कार्योंमें अपना मन लगाया। जहां जहां पांचाली पांव रखती थी वहां वहां वह कामपीडित कीचक जाता था तथा उसके साथ हँसी मजाक करता था । ॥ २४५ - २४९ ॥ कोपसे जिसका अधरप्रदेश कँप रहा है ऐसी अर्जुनकी स्त्रीने अर्थात् द्रौपदीने “ तुम्हारा ऐसा वर्ताव योग्य नहीं " ऐसा कहा तथा हृदयको कटु लगनेवाले अक्षर जिनमें हैं ऐसें भाषणोंसे द्रौपदीने उसकी निर्भर्त्सना की, परंतु निर्लज्ज होकर पुनः उसके साथ हंसी मजाककी बातें करनेवाले लम्पट कीचकको उत्पन्न हुए कोपसे वह निष्ठुर अक्षरोंवाली भाषा इस प्रकार बोलने लगी । " हे कीचक महापराक्रमी पांच गंधर्व मेरे हैं यदि तेरे ऐसे नीच वर्तावको वे जानेंगे तो तुझे अवश्य यमके घर भेजे विना नहीं रहेंगे" ।। २५० - २५२ ॥ उसका भाषण सुनकर कीचक का मुख प्रफुल्ल हुआ अर्थात् वह हंसने लगा। वह कहने लगा कि " हे द्रौपदी, तू सुन, मुझमें भी अनेक हाथियोंका सामर्थ्य है। मैं आक्रमण कर तेरा उपभोग लूंगा । हे सुन्दरि, तू मेरे पास
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