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________________ चतुर्दशं पर्व २९७ इति मातृसुतौ तत्र तन्वानौ जल्पमुत्तमम् । आसाते किंवदन्तीशौ यावत्सुन्यायकोविदौ । तावदाकारणं तस्याः सुतस्य समुपस्थितम्। एह्येहीति प्रकुर्वाणैः संकृतं तलरक्षकैः ॥११६ भो वणिग्वर वेगेन तद्धल्यर्थसुसिद्धये। शकटारोहणं कृत्वा त्वमागच्छ समुद्यतः ॥११७ विलम्बन बलेनापि न सेत्स्यति हितं तव । किं क्लिश्नासि क्षणस्थित्यै स्वात्मानं त्वं त्वरांकुरु इत्युक्तं पावनिः श्रुत्वा प्रोवाच तलरक्षकान् । यात यात समेष्यामि तस्मै दास्यामि मदलिम्।। श्रुत्वा तद्वचनं सर्वे तलरक्षास्त्वरान्विताः । समवर्तिभुजिष्याभा यावजग्मुः सहर्षिताः॥१२० तावता भानुमान् प्राच्यामुदितो वेदितुं यथा । तच्चरित्रं कृपाक्रान्त आयाति वीक्षितुं हि तत्।। ततः सजीकृतं तेन शकटं विकटं परम् । कटाहमात्रनैवेद्यैः पूर्ण सत्तूर्णतां गतम् ॥१२२ पावनी रथमारुह्य निर्भयो भीतिदारुणः । चचाल चञ्चलचित्रं दाहको वायुमित्रवत् ।।१२३ बकाख्यो दानवस्तावदृष्ट्वा तं विपुलोदरम् । आयान्तं संमुखं क्षिप्रमयासीत्समवर्तिवत् ॥ भीमस्तं राक्षसं वीक्ष्य कलयन्तं ककुप्चयम् । क्रुद्धं कलकलारावं कुर्वाणं सोज्गदीदिति ॥ आगच्छागच्छ दैत्येन्द्र ददाम्यद्य महाबलिम् । आलोक्य भुजदण्डस्य बलं प्रविपुलं तव ॥ एतावत्कालपर्यन्तं हता हन्त त्वया नराः। वराका दन्तसंलग्नतृणा नश्यन्त एव च ॥१२७ थे। इतने में उस वैश्यपत्नीके लडकेको बुलावा आया। कोतवालोंने उसके लडकेको जल्दी आनेके लिये कहा । " हे श्रेष्ठ वैश्य बकके बलिके सिद्धयर्थ वेगसे गाडीपर आरोहण करः । तयारीसे आ जाना। यदि तुमने विलंब किया अथवा कुछ सामर्थ्य दिखाया तोभी तुम्हारा हित सिद्ध नहीं होगा। थोडेसे क्षणतक जीनेके लिये क्यों अपनेको कष्ट दे रहे हो ? तुम अब जलदी करो” ॥ ११३-११८ ॥ ऐसे वचन सुनकर कोतवालोंको वायुपुत्र बोला कि, “ जाओ, जाओ, मैं आऊंगा और बकराक्षसको मेरा बलि समर्पण करूंगा-" उसका भाषण सब तलरक्षकोंने सुना, और यमदूतके समान वे त्वरासे हर्षित होकर चले गये। इतने में पूर्वदिशामें मानो बकराक्षसका चरित जाननेके लिये सूर्य उदित हुआ। दयालु होकर उस दृश्यको देखनेके लिये मानो वह आ रहा था ।। ११९-१२१ ॥ तदनंतर उसने बडी गाडी सज्ज की, कढाईभर अन्न उसमें रखा, इस तरह जल्दी पूर्ण तयारी की। भीतिको भयंकर, निर्भय भीम रथपर चढकर जलानेवाले अग्निके समान चलने लगा। उतनेमें बकराक्षस उस भीमको अपने सम्मुख आते हुए देखकर यमके समान शीघ्र आगया। सब दिशाओंको देखते हुए, कलकल शब्द करनेवाले क्रोधयुक्त बकराक्षसको देखकर वह भीम उसको इस प्रकार कहने लगा"हे दैत्येन्द्र आओ, आओ, आज तुम्हारे भुजदण्डका विपुल बल देखकर तुम्हें मैं महाबलि अर्पण करता हूं। हे बकराक्षस, आजतक तुमने जिन्होंने अपने दांतोंमें तृण पकडा है, ऐसे दीन भागनेवाले बहुत आदमी मारे हैं, यह खेदकी बात है" । क्रोधसे उन्मत्त वे दोनों मनुष्य खम ठोककर भिंड गये। अपने हृदयसे आकाशको फाडनेवाले और अपने दो बाहुओंके मध्यभागको पीटनेवाले पां. ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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