________________
२८२
पाण्डवपुराणम्
समीचीनः कदाचित्स सपत्नी दुःखदा भवेत् । सपत्नीतः परं दुःखं नाभून्न भविता स्त्रियः ।। १२८
तथा पत्युरमान्या वा वन्ध्या वा युवतिर्भवेत् । प्रसूतिका कदाचिच्छेदःखं स्याद्गर्भसंभवम् ।। गर्भभारभराक्रान्ता न क्वापि लभते सुखम् । प्रस्तावामनस्यं कस्तद्दुःखं गदितुं क्षमः ॥ १३० मृते भर्तरि वैधव्यं तादृशं तदपि स्त्रियाः । युवतीजन्मजं दुःखं गदितुं कः क्षमो भवेत् ।। १३१ विवाहविधिसन्त्यक्ता वयं वैधव्यमागताः । धिक्स्त्रीत्वं भवभोगैर्नः कृतमन्यच्च श्रूयताम् ।। भर्तुः प्रसादतः स्त्रीणां सफलाः स्युर्मनोरथाः । धर्मार्थकामजाः सर्व भर्त्रधीनं यतः स्त्रियाः ॥ वृथा भर्त्रा विना जन्म स्त्रीभिर्निर्गम्यते कथम् । अतः संयममाधाय सुखिताः स्याम चालयः।। शीलसंयमसम्यक्त्वध्यानैः स्त्रीलिङ्गमाकुलम् । हत्वा नरत्वमासाद्य मुक्तिं यास्याम इत्यलम् ॥ तद्वाचमपरा श्रुत्वोवाच दीक्षाप्रशंसिनी । त्वदुक्तं सत्यमेवात्र किं चान्यच्छूयतां सखि ।
होगी और उसे अपार दुःख होगा || १२१ - १२७ ॥ कदाचित् उसे सद्गुणी पति मिल गया तो भी कन्याकी सौत उसे दुःखदायक होती है। सौतसे स्त्रियोंको जो दुःख-कष्ट होता है उसके बराबरीका दुःख जगतमें पूर्वकालमें नहीं था और आगे भी नहीं होगा ॥ १२८ ॥ यदि पतिको कन्या अप्रिय हो गयी, अथवा वह वंध्या हुई तो उसे तीव्र दुःख उत्पन्न होता है । जब गर्भवती होती है। तब गर्भका दुःख उसे सहन करना पडता है । प्रसूत होते समय प्रसूतिका असह्य दु:ख उसे भोगना पडता है । गर्भभार बढने पर उसे उससे कहांभी सुख नहीं मिलता है । प्रसूत होनेपर जो दुःख उत्पन्न होता है उसे वर्णन करनेमें कौन समर्थ है ? " ॥१२९ - १३०॥ पति मरनेपर जो दुःख स्त्रियोंको होता है वहभी कहने में अशक्यही है । संक्षेपसे यह कह सकते हैं कि, स्त्रीजन्ममें जो दुःख उत्पन्न होते हैं वे सब अवर्णनीय हैं। उन्हें कोई भी वर्णन नहीं कर सकेंगे। हम तो विवाहविधिसे रहित हुई हैं अतः हमें वैधव्य प्राप्त हुआ है । ऐसे स्त्रीत्वको - स्त्रीपर्यायको धिक्कार हो । स्त्रीभवमें मिलनेवाले भोगोंसे हमारा कुछ प्रयोजन नहीं है । और भी स्त्रीपर्यायके विषय में जो वक्तव्य 1 है उसे आप सुने - पतिकी यदि स्त्रियोंपर कृपा होगी तो उनके धर्म, अर्थ और कामजन्य मनोरथ सफल होते हैं । अन्यथा सफल नहीं होंगे, क्यों कि स्त्रियोंका संपूर्ण सुख पतिके अधीनही होता है । पतिके बिना स्त्रीका जन्म व्यर्थ है । पतिके बिना स्त्रियोंके द्वारा अपना जन्म कैसे व्यतीत किया जावेगा ? स्त्री पति विना अपने जन्मका निर्वाह नहीं कर सकती । अतः हे सहेलियों, हम संयम धारण करके सुखी हो जायेंगी । हम शील, सम्यग्दर्शन, संयम, ध्यानके द्वारा यह दुःखपूर्ण स्त्रीपर्याय नष्ट करके पुरुषपर्यायको प्राप्त कर मुक्तिको प्राप्त करेंगी । इस प्रकार से इस स्त्रीपर्यायसे हमें कुछ प्रयोजन नहीं हैं " ॥ १३१ - १३५ ॥ गुणप्रभाका वचन सुनकर दीक्षाकी प्रशंसा करनेवाली दुसरी कन्या सुप्रभा इस प्रकारसे बोलने लगी, “हे सखि, तेरा कहना सत्यही है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International