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पाण्डवपुराणम् मुश्चन्ति जलसंघाताबाटयन्तः शिखावलान् । कुर्वन्तो जनतानन्दं मेघा इव गृहस्थिताः ।। प्रतिबिम्बं स्वमालोक्य यत्र स्फटिकभित्तिषु । सपत्नीदरतो नार्यो मन्त्यस्तद्धसिता जनैः॥ हरिन्मणिदृषद्धां कं वीक्ष्य मृगशावकाः। तृणादनधिया यान्तो विलक्ष्याः सन्ति यत्र च ।। धनेन धनदं धीरास्त यन्त्यन्यथा कथम् । जिनजन्मोत्सवे यत्र श्रीदो रत्नानि वर्षति ॥६२ एवं तौ तां पुरीं प्राप्य यादवेशो जनाश्रये । शुम्भत्स्तम्भमहाशोभे कौरवं चावतारयेत् ।।६३ सुमुहूर्ते शुभे लग्ने विवाहविधिकोविदः । महाभुजा स्रजोद्दीप्तां वेदी निन्ये स सोत्सवः ॥६४ सौदार्य च समाधुर्य कान्तिकान्तं गुणाकरम् । वत्रे च कौरवं कुन्ती सुकाव्यमिव भारती ॥६५ मद्री कुन्तीमहास्नेहाजनकाद्यैः समादृता । कौरवं सोत्सवं वने रामं सीतेव सद्गुणा ॥६६ बहुभिः पूजितः पाण्डुरखण्डैर्वस्त्रभूषणैः । दन्तावले रथैरश्वैः सुवर्णैः शस्त्रसंचयैः ॥६७॥ ततः कन्याद्वयं लात्वा सभोगो भोगिवद्ययौ । पुरं नागपुरं श्रीकं कुमारः कौरवाग्रणीः ।।६८
हुए मधुर स्वरसे मानो राजसमूहको बुला रही थी। स्त्रियोंके गीतके संगमसे मानो गायन गा रही थी। द्वारोंपर बंधे हुए पुष्पमालाओंसे यह नगरी मानो स्वर्गको हंस रही थी। इस नगरीके घरोंको लगे हुए चन्द्रकान्तमणि चन्द्रके किरणोंसे अकालमें पीडित होकर मयूरोंको नचाते हुए मेघोंके समान पानीके समूह-प्रवाह उत्पन्न करते थे। जिस नगरीमें स्फटिकमणियोंकी भित्तीमें अपनाही प्रतिबिम्ब देखकर सौतके भयसे उसके ऊपर जब आघात करती थी तब लोगोंके द्वारा उनका उपहास किया जाता था। इस नगरीमें पन्नारत्नोंसे खचित जमीनको देखकर हरिणोंके बच्चे तृणभक्षणकी बुद्धिसे उनके पास जाते थे परंतु उनको खिन्न होना पडता था। इस नगरीके धीर धनिक पुरुष अपनी धनसम्पत्तिसे कुबेरकी भी खबर लेते थे। यदि ऐसा नहीं होता तो इस नगरीमें जिनजन्मोत्सवके समय कुबेर रत्नोंकी वृष्टि क्यों करता ? ऐसी सुंदर नगरीमें उन दोनोंने प्रवेश किया । अनंतर अंधकवृष्टिने चमकीले स्तंभवाले अत्यंत रमणीय प्रासादमें कौरवराज पाण्डुकुमारको ठहराया ॥ ५४-६३ ॥ विवाहविधिको जाननेवाले पुरोहित मालाओंसे सुशोभित और विस्तृत वेदीपर पांडुकुमारको उत्सवपूर्वक ले गये ॥ ६४ ॥ वहां सरस्वतीके समान कुन्तीने औदार्य, माधुर्य, कान्ति आदि गुणोंसे मनोहर काव्यके समान श्रीपाण्डुकुमारको वर लिया। पाण्डुकुमार उदार चित्त मधुरभाषी और सुंदर थे। तथा सत्य बोलना आदि अनेक गुण उनमें थे। ऐसे पाण्डुकुमारके साथ कुन्तीका विवाह हो गया। कुन्तीके ऊपर मद्रीका गाढ प्रेम था। मातापिताके द्वारा जिसका आदर किया गया ऐसी मद्रीकन्याने भी हर्षसे सद्गुणी सीताने जैसे रामको वर लिया था वैसे कुन्तीके महास्नेहसे वश होकर पाण्डुराजको वर लिया । अनेक अखण्ड वस्त्र, अलंकार, हाथी, घोडे, रथ, सुवर्ण और शस्त्रसमूह देकर अंधकवृष्टिने पाण्डुराजाका-जामाताका आदर सत्कार किया ॥६५-६७।।
[स्त्रियोंकी चेष्टायें ] विशालदेही धरणेन्द्र जैसा अपने लक्ष्मीसंपन्न नगरमें प्रवेश करता
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