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________________ पुराणके निम्न श्लोकोंका मिलान क्रमसे पाण्डवपुराण ( पर्व ९)के श्लोक १२७, १२८ [ पूर्वार्द्ध ], १३०, १३२, १३३, १३६ व १३७ से किया जा सकता हैआदिपुराण पर्व ५ यावज्जीवं कृताहारशरीरत्यागसंगरः । गुरुसाक्षि समारुक्षद्वीरशय्याममूढधीः ॥ २३३ ॥ आरुह्माराधनानावं तितीर्घर्भवसागरम् । २३४ प्रायोपगमनं कृत्वा धीरः स्व-परगोचरान् । उपकारानसौ नैच्छच्छरीरे ऽनिच्छतां गतः ॥ २३७ ॥ अनाशुषोऽस्य गात्राणां परं शिथिलताभवत् । नारूढायाः प्रतिज्ञाया व्रतं हि महतामिदम् ।। २३९ ॥ शरद्घन इवारूढकायोऽभूत्स रसक्षयात् । मांसासृजवियुक्तं हि देहं सुर इवाभवत् ।। २४० ॥ चक्षुषी परमात्मानमद्राष्टामस्य योगतः । अश्रौष्टां परमं मंत्रं श्रोत्रे जिह्वा तमापठत् ।। २४९ ॥ कोशादसेरिवान्यत्त्वं देहाज्जीवस्य भावयन् । भावितात्मा सुखं प्राणानौज्झत् सन्मन्त्रसाक्षिकम् ॥ २५३ ।। ___इस प्रकार मिलान करनेसे पाठक देख सकते हैं, ये आदिपुराणके श्लोकही थोडेबहुत शब्द परिवर्तनके साथ पाण्डवपुराणमें लिये गये हैं । इसी प्रकार प्रस्तुत पुराणके तीसरे पर्वमें जो जय. कुमार-सुलोचनाका वृत्त दिया गया है उस प्रकरणकभी अनेक श्लोक थोडेबहुत परिवर्तनके साथ आदिपुराणसे लिये गये हैं। आदिपुराणके समानही उत्तरपुराणकेभी कितनेही श्लोकोंका उपयोग शुभचन्द्रने प्रस्तुत पुराणमें किया है, उदाहरण स्वरूप, चतुर्थ पर्वके अन्तर्गत शान्तिनाथका चरित्र । यहां यह सम्पूर्ण चरित्रही प्रायः उत्तरपुराणके अनुसार लिखा गया है । इनके अतिरिक्त कवि वादीभसिंह विरचित क्षत्रचूडामणिकाभी उपयोग प्रकरणानुसार भ. शुभचन्द्रने प्रस्तुत पुराणमें किया है । यह बात प्रस्तुत पुराणके अन्तमें दी गई प्रशस्तिमें अपने लिये प्रयुक्त 'वादीभसिंह ' विशेषणसेभी पुष्ट होती है । क्षत्रचूडामणिकी रचना सम्भवतः ११ वीं शताब्दी या इससे पहिलेही हुई है । इसमें कवि वादीभसिंहके द्वारा जीवन्धर स्वामीके चरित्रका बड़ी सुन्दरतासे वर्णन किया गया है । प्रत्येक श्लोकके उत्तराधमें प्रायः नीतिवाक्य देकर पूर्वार्द्ध के अभिप्रायको पुष्ट किया गया है। इससे यदि इसे नीतिग्रन्थ कहा जाय तो अनुचित न होगा। १ देखिये आदिपुराण पर्व ४४ श्लोक १-४ और पाण्डवपुराण पर्व ३ श्लोक ६४-६६ २ देखिये उत्तरपुराण पर्व ६२ श्लोक १२५.१३१ और पाण्डवपुराण पर्व ४ श्लोक ६३-६८ ३ देखिये क्षत्रचुडामणि लम्ब १ श्लोक ६६ से ६८ व ७५ तथा पां. पु. पर्व ९ श्लोक ४५,४६, ४९ व ६१; तथा क्ष. चू. लम्ब ११ श्लोक ३५, ४७, ६१ और पां. पु. पर्व २५ श्लोक ८३,९४,१०४ ४ पट्टे तस्य गुणाम्बुधितधरो धीमान् गरीयान् वरः । श्रीमच्छ्रीशुभचन्द्र एष विदितो वादीभसिंहो महान् ॥ तेनेदं चरितं विचारसुकरं चाकारि चञ्चद्रुचा । पाण्डोः श्रीशुभसिद्धिसातजनक सिद्धयै सुतानां मुदा ।। पर्व २५-१७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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