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आग्रह से जगद्रति के साथ विवाह करना स्वीकार कर लिया एवं वे अनेक नृपों एवं देवों से वेष्टित होकर बड़ी विभूति के साथ विवाह के लिए चल दिए । मिथिलापुरी उस समय रंग-बिरंगी ध्वजाओं की पंक्तियों से, भाँति-भाँति के नृत्य एवं वाद्य आदि से जायमान सैकड़ों प्रकार के महोत्सवों से शोभित थी। राजद्वार से निकल कर तीर्थंकर पृथ्वीपुर की ओर जाने लगे । अपने पहिले जन्म में उन्होंने अपराजित विमान की विभूति का उपभोग किया था; इसलिए मिथिलापुरी की अद्वितीय शोभा देख कर उन्हें अपराजित विमान का स्मरण हो आया । उन्हें उसी संसार एवं शरीर भोगों से वैराग्य हो गया एवं अवधिज्ञान के धारक वे भगवान श्री मल्लिनाथ अपने चित्त में इस प्रकार का विचार करने लगे ।।८८-६०।।
अपराजित विमान के अन्दर जिन भोगों का भोग किया गया, वे भोग महामनोज्ञ थे; तृप्ति को देनेवाले उत्कृष्ट ना थे, अनुपम थे एवं सुख के कारण थे। जब यह जीव उन विपुल भोगों से भी तृप्त नहीं हुआ, तब क्या यह इस ||
लोक के ऐसे भोगों से तृप्त हो सकता है ? जो भोग बड़े दुःख से प्राप्त होते हैं, अनेक प्रकार के दुःखों को देनेवाले ||
हैं, शरीर को नष्ट-भ्रष्ट करनेवाले हैं, अत्यन्त तुच्छ हैं एवं आधि-व्याधि आदि अनेक व्यथाओं के समुद्र हैं पु|| ॥६१-६२।। ईंधन के विपुल ढेर से अग्नि की तृप्ति नहीं हो सकती, परन्तु कदाचित् दैवयोग से उस ईंधन से अग्नि || पु
की तृप्ति हो जाए; अनेक नदियों के प्रवाहों से समुद्र की तृप्ति नहीं होती । परन्तु कदाचित् दैवयोग से उसकी भी || रा तृप्ति हो जाए, अनेक प्रकार के धन के संग्रह से लोभी पुरुष की तृप्ति नहीं हो सकती, परन्तु दैवयोग से कदाचित उसकी भी तृप्ति हो जाए; परन्तु जो पुरुष विषयों में आसक्त (कामी) है, उसकी भले प्रकार भोगे जानेवाले अनन्त भवों से प्राप्त होनेवाले (जिनका मिलना बड़ी कठिनता से है एवं जिनको छोड़ते समय भी महाकष्ट जान पड़ता है) ऐसे भोगों से कभी भी तृप्ति नहीं हो सकती है ।।६३-६४।। मन में बहुत भोगों की लालसा रखने के कारण भी यह जीव इतने विपुल काल पर्यन्त अनेक प्रकार के दुःखों को भोगता-भोगता इस दुष्ट संसाररूपी महाभयानक वन के ||६५ अन्दर चक्कर लगाता फिर रहा है एवं भोगों में अत्यन्त आसक्त होने के कारण इसे वास्तविक मार्ग का ज्ञान नहीं होता ।६।। यह भोगों की तीव्र अभिलाषा संसार में अनेक प्रकार के अशुभों को उत्पन्न करनेवाली है, जबतक यह चित्त के अन्दर विद्यमान है, तबतक कभी भी जीवों को मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती है एवं जबतक मोक्ष की प्राप्ति
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