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________________ अवान्तर भेदों में वेसठ शलाका पुरुषों के चरित्र का वर्णन है । मिथ्यादृष्टि, अव्रती, अल्पज्ञानी व्यक्तियों के उपदेश हेतु यह प्रथमानुयोग मुख्य करणानुयोग- कर्म सिद्धान्त व लोक अलोक दिमाग को, युगों के परिवर्तन को तथा चारों गतियों को दर्पण के समान प्रगट कराने वाला ही सम्यज्ञान है । इस अनुयोग से उपयोग लगता है । पापवृत्ति छूटती है । धर्म की वृद्धि होती है तथा तत्व ज्ञान की प्राप्ति शीघ्र होती है। जीव के कल्याण मार्ग पर चलने केलिए विशेष रूप से यह करणानुयोग है। चरणानुयोग- जीव के आचार विचार को दर्शाने वाला सम्यक्ज्ञान है । यह गृहस्थ और मुनियों के चरित्र की उत्पत्ति, वृद्धि, रक्षा के अंगभूत ज्ञान को चरणानुयोग शास्त्र के द्वारा विशेष प्रकार से जाना जाता है । जीव तत्व का ज्ञानी होकर चरणानुयोग का अभ्यास करता है। चरणानुयोग के अभ्यास से जीव का आचरण एक देश या सर्वदेश वीतराग भाव अनुसार आचरण में प्रवर्तता है। द्रव्यानुयोग- इस अनुयोग में चेतन और अचेतन द्रव्यों का स्वरूप व तत्वों का निर्देश रूप कथन है । इसमें जीव, अजीव, सुतत्वों को, पुण्य, पाप, बंध, मोक्ष को तथा भाव श्रुत रूपी प्रकाश को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है । इस अनुयोग अन्र्तगत शास्त्रों में मुख्यतः शुद्ध-अशुद्ध जीव, पदगल, धर्म, अधर्म, आकाश काल रूप अजीव द्रव्यों का वर्णन है। जिनको तत्व का ज्ञान हो गया है ऐसा भव्य जीव द्रव्यानुयोग का प्रवृत्ति रूप अभ्यास करता है । इसके अतिरिक्त वस्तु का कथन करने में जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है । उन्हें अनुयोग द्वार कहते हैं । इस प्रकार भगवान महावीर स्वामी की परम्परा में गणधर आदि महान पुरुषों ने द्वादशांग रूप दिव्य वाणी का परिबोध इन अनुयोगों के माध्यम से प्रतिपादित किया है । परम्पराचार्यों की वाणी के अनुराधक विद्वत् जनों द्वारा अन्य अन्य विद्याओं के माध्यम से उसे प्रस्तुत किया गया है । जन जन के हितार्थ तथा भव्यों की आत्मा के कल्याणार्थ भगवान महावीर स्वामी के दिव्य २६ सौ वें जन्मोत्सव के पावन प्रसंग पर वीतराग वाणी ट्रस्ट द्वारा छव्वीस ग्रंथों को प्रकाशित करते हुए अपने आपको गौरवशाली अनुभव करता हूँ। हम सब अहोभाग्यशाली हैं कि हम सब के जीवन में अपने आराध्य परमपिता देवाधिदेव अंतिम तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी का सन् १९७३ में पच्चीस सौ वां निर्वाण महोत्सव मनाने का परम संयोग मिला था। और सन् २००१ में छब्बीस सौ वां जन्मोत्सव अहिंसा वर्ष के रूप में मनाने का सुयोग साकार हुआ। इस महामानव के सम्मान में भारत सरकार ने भी इसे विश्व स्तर पर अहिंसा वर्ष के रूप में चरितार्थ करने का विश्व स्तर पर जो आयोजन साकार किया है वह विश्व जन मानुष को अवश्य अहिंसा, सत्य के सिद्धान्त का परिज्ञान तो देगा ही उसकी महत्ता को प्रतिपादित करने तथा भगवान महावीर के पवित्र आदर्शों पर चलने की प्रेरणाऐं भी प्रदान करेगा । जहाँ संपादक ने सन् १९७३ में भगवान महावीर स्वामी के २५ सौ वें निर्वाण महोत्सव पर एक सौ वर्ष में देश में हुए दिगम्बर जैन विद्वानों, साहित्यकारों, कविगणों, पण्डितों के अलावा समस्त दिगम्बर जैन महाव्रती जनों के सचित्र जीवन वृत्त उनके उन्नत कृतित्व और अपार व्यक्तित्व के साथ लिखकर विद्वत् अभिनंदन ग्रंथ के रूप में प्रकाशित किया था । आज उन्हीं तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी के छब्बीस सौ वें जन्मोत्सव पर उनकी पावन स्मृति में भगवान महावीर स्वामी की परम्परा में जन्में हमारे परमाराध्य परम्पराचार्यों तथा उनके ही आधार पर लिखित मूर्धन्य विद्वानों द्वारा प्रणीत २६ प्रकार के आगम ग्रंथों के मात्र हिन्दी रूपान्तर प्रकाशन के संकल्प को साकार किया है। Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002720
Book TitleMallinatha Purana
Original Sutra AuthorSakalkirti Acharya
AuthorGajadharlal Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size8 MB
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