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लक्ष्मी--ये छ: देवियाँ बड़ी भक्ति से शीघ्र ही मिथिलापुरी आ गईं। ये समस्त देवियाँ भरतक्षेत्र के पद्म आदि सरोवरों के कमलों में रहनेवाली हैं एवं परम धर्म का सदा सेवन करनेवाली हैं ।।१६।। मिथिलापुरी में आकर उन देवियों ने अत्यन्त निर्मल पदार्थों से माता प्रजावती के गर्भ का संशोधन किया एवं जिस समय में जिस कार्य के करने की आवश्यकता होती थी, उसे भक्तिपूर्वक कर वे माता की सेवा एवं आज्ञा का पालन करती थीं ।।२०।। श्री देवी माता के शरीर के अन्दर अनेक प्रकार की शोभा उत्पन्न करती थीं, ही देवी की सेवा से माता के हृदय के अन्दर विशेष रूप से लज्जा का सन्चार होता था, धृति देवी की कृपा से धीरता-वीरता उत्पन्न हो गई थी, कीर्ति देवी की सेवा से || म यह गुण प्रगट हुआ था कि सर्वत्र उनकी कीर्ति फैल गई थी; इसलिए सब लोग बड़ी भक्ति से उनकी स्तुति करते | थे। बुद्धि देवी की सेवा से माता के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र के अन्दर विशेष निर्मलता होने लगी थी एवं लक्ष्मी देवी की सेवा से माता को अनेक प्रकार के ऐश्वयों का लाभ हुआ था तथापि वह माता प्रजावती अपनी तीव्र पुण्य के उदय से व्यवहार से ही सुन्दर थी, तथा स्वभाव से निर्मल भी । मणि पर जिस प्रकार संस्कार (शोधन) कर देने से कई गुणा अधिक चमक आ जाती है, उसी प्रकार श्री आदि देवियों के द्वारा शोभा आदि गुणों से संस्कार युक्त की गई वह माता भी अब विशेष रूप से सुन्दर प्रतीत होने लगी ।।२१-२२।।।
कदाचित् चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन जब कि शुभ लग्न था, अश्विनी नाम का शुभ नक्षत्र था एवं योग आदि शुभ थे, वह अहमिन्द्र (भगवान श्री मल्लिनाथ का जीव) अपराजित नाम के विमान से चयकर मति, श्रुति एवं अवधिरूप तीन ज्ञानों को धारे हुए मोक्षमार्ग को प्रगट करने के लिए अत्यन्त स्वच्छ स्फटिक पाषाण के समान माता प्रजावती के गर्भ में आकर अवतीर्ण हो गया ||२३-२४।। भगवान श्रीमल्लिनाथ के गर्भ में आते ही भवनवासी आदि चारों निकायों के देवों के घरों में घण्टा आदि बजने लगे एवं सिंहासन आदि कँप गए । घण्टा आदि का बजना एवं सिंहासन का कँपना आदि शुभ लक्षणों से उन्हें भगवान श्री मल्लिनाथ के गर्भ में आने का निश्चय ||४५ हो गया । वे अपने-अपने निकायों के इन्द्र एवं अपनी-अपनी देवांगनाओं के साथ शीघ्र ही अपने-अपने वाहनों पर सवार हो गए एवं अपनी दैदीप्यमान प्रभा से समस्त आकाश को प्रकाशमान करते हुए वे मोक्ष प्राप्ति की अभिलाषा से शीघ्र ही मिथिलापुरी आकर उपस्थित हो गए ।।२५-२६।। गर्भावतार नामक पहिले कल्याण में आये हुए सौधर्म
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