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________________ बाद पुनः जिन मन्दिर में जाना चाहिए । वहाँ जाकर अच्छी प्रकार गुरुओं को नमस्कार करना चाहिए तथा तीन दिन रात्रि पर्यन्त बड़े हर्ष के साथ अनशन व्रत का पालन करना चाहिए। उस रात्रि को उसे मन्दिर में ही रहना चाहिए तथा सम्यग्दर्शन आदि रत्नत्रय का हृदय में चिन्तवन करना चाहिए। प्रातःकाल उठ कर सामायिक करना चाहिए तथा फिर भगवान श्री जिनेन्द्र आदि की पूजा के समारोह में लग जाना चाहिए। जिस समय भगवान श्री जिनेन्द्र आदि की पूजन करना समाप्त हो चुके उसके बाद गुरु के पास आना चाहिए. तथा भक्तिपूर्वक उनके सामने खड़ा होकर | व्रती को उनसे यह पूछना चाहिए-हे भगवन् ! मैं रत्नत्रय व्रत की पूजा का आचरण करना चाहता हूँ, आप आज्ञा || म दीजिए । रत्नत्रय व्रत की पूजा के लिए जब सर्वथा हितकारी मार्ग का उपदेश देनेवाले गुरु की आज्ञा मिल जाए, उस समय व्रती को चाहिए कि वह बड़े आनन्द के साथ रत्नत्रय व्रत की परमोत्कृष्ट पूजा को आरम्भ कर दे ।।१४-१७।। जो महानुभाव रत्नत्रय व्रत की पूजा का प्रारम्भ करना चाहे उन्हें चाहिए कि वे सबसे पहिले तीर्थंकर भगवान थ| श्री जिनेन्द्र की पूजा का प्रारम्भ करें तथा उन्हीं के सामने भक्तिपूर्वक बैठ कर किसी थाल आदि में या शिला के | मध्य में अष्ट (आठ) दल (पाँखुड़ी) का कमल बनायें । चन्दन का द्रव बना कर सुवर्णमयी लेखनी से उस कमल की | कली के मध्य भाग में ॐ ह्रीं बीजाक्षरों के साथ 'सम्यग्दर्शन' शब्द लिखें तथा उस कमल की आठों पाखुड़ियों में | | पहिले विस्तार से कहे गए निःशंकित आदि आठों अंगों को बीजाक्षरों के साथ पूजा के लिए लिखें। जिस समय वह || रा कमलाकार यन्त्र तैयार हो चुके उस समय ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्रः अष्टांग-सम्यग्दर्शन ! अत्रावतर, अवतर स्वाहा! ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्रः अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । इस प्रकार आगम में कहे गए मन्त्रों का सानन्द उच्चारण कर विपुल आयोजन के साथ विधिपूर्वक सम्यग्दर्शन की पूजा करना प्रारम्भ कर दे ।।१८-२१।। इस प्रकार सम्यग्दर्शन की पूजा के बाद व्रती को आठों द्रव्यों से भक्तिपूर्वक श्रुतज्ञान की पूजाका प्रारम्भ करना चाहिए । सम्यग्दर्शन के सदृश किसी थाल आदि में आठ पाँखुड़ियों का कमल लिखना चाहिए । चन्दन का द्रव बनाकर सुवर्ण की कली के मध्यभाग में ॐ एवं ह्रीं बीजाक्षरों के साथ 'सम्यग्ज्ञान' शब्द लिखना चाहिए एवं उसकी आठों पाँखुड़ियों में बीजाक्षर मन्त्रों के साथ व्यन्जनोर्जित आदि आठ आचारों को लिखना चाहिए। इस प्रकार जिस समय सम्यग्ज्ञान का मन्त्र तैयार हो जाए उस समय जल से लेकर फल पर्यन्त निर्मल एवं उत्कृष्ट अष्ट द्रव्यों Jain Education international For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002720
Book TitleMallinatha Purana
Original Sutra AuthorSakalkirti Acharya
AuthorGajadharlal Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size8 MB
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