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। चतुर्थः सर्गः
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प्रथान्यदा 'महास्थानीमध्यस्थं चक्रवर्तिनम् । स्थापत्यः समयः कश्चिदित्यानग्य व्यजिज्ञपत् ॥१।। देव दत्तावधानेन निशम्यतत्क्षमस्व मे । यत्कन्यान्तःपुरे वृत्तं तदित्थमभिकथ्यते ॥२॥ गायिकाव्याजमास्थाय त्वामत्रत्यापराजितः। 3उत्सुकय्य भवत्पुत्री भ्रातृसादकृतोद्धतः ॥३॥ विमाने तामथारोप्य मातरं चापराजितम्। अनेषीत्प्रातरा व स 'महाचापराजितः ॥४॥ स किञ्चिवन्तरं गत्वा वोक्ष्यास्माननुषावतः । प्रतिपाल्य विहस्यैवमवादीद् भयवर्जितः ।।५।। भवद्भिः किं थायातैरशक्तयुद्धकमणि । अनायुधान्वयोवृद्धान्किं हन्यादपराजित: ॥६॥ यात यूयं निवृत्यास्मात्प्रदेशात्प्रणतोऽस्म्यहम् । ब्रत मचनेनेसमुदन्तं चक्रवर्तिनः ।।७।। इयमायोधनायव मद्भात्रा कन्यका हता । प्रनिमित्त सतां युद्ध तिरश्चामिव किं भवेत् ।।८।।
चतुर्थ सर्ग
अथानन्तर अन्य समय भय सहित किसी कञ्च की ने महासभा के मध्य में स्थित चक्रवर्ती दमितारि को नमस्कार कर इसप्रकार निवेदन किया ॥१॥ हे देव ! सावधानी से इसे सुन मुझे क्षमा कीजिये । कन्या के अन्तःपुर में जो कुछ हुअा है वह इसप्रकार कहा जाता है ॥२॥ गायिका का बहाना रख उद्दण्ड अपराजित ने यहां आपके पास आकर तथा आपकी पुत्री को उत्कण्ठित कर भाई के अधीन कर दिया है ।।३।। महाधनुष से सुशोभित वह आज ही प्रातः आपकी पुत्री और भाई अपराजित को विमान में चढ़ा कर ले गया है ।।४।। वह कुछ दूर जाकर तथा पीछे दौड़ते हुए हम लोगों को देख कर रुका और हँस कर निर्भय होता हुआ इसप्रकार कहने लगा ॥५॥ व्यर्थ आये हुए तथा युद्ध कार्य में असमर्थ आप लोगों से क्या प्रयोजन है ? क्या अपराजित शस्त्र रहित वृद्धजनों को मारेगा? ॥६॥ तुम लोग इस स्थान से लौट कर जाओ। मैं नम्र हूँ, मेरे वचन से यह समाचार चक्रवर्ती से कहो ।।७।। युद्ध करने के लिये ही मेरे भाई द्वारा यह कन्या हरी गयी है । तिर्यञ्चों के
१ महासभामध्यस्थम् २ कञ्चुकी ३ उत्सुका कृत्वा ४ धावाधीनाम् ५ च+अपराजितम् इति सन्धि। ६ महाकोदण्डशोभितः ७ पश्चाद् धावत: ८ कन्याहरणवृत्तान्तम् ।
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