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(२६) मध्य काञ्चन गिरि पर्वत पर धातिया कर्मों का क्षय कर केवली के रूप में विराजमान मुनिराज को देखा उसी समय वह विमान में वापिस जाकर अनन्तवीर्य और कनकश्री को साथ लेकर केवली भगवान् की वन्दना के लिये प्राया। सबने केवली भगवान् को नमस्कार किया। पूछने पर केवलज्ञानी मुनिराज कनकधी के भवा
न्तर कहने लगे। कनक श्री के भवान्तर का वर्णन ।
१३-३३ । ६१-६३ कनकश्री के भवान्तर सुनने के बाद अपराजित और अनन्तवीर्य कनकश्री ३४-४५ । ६३-६४
के साथ अपने नगर की ओर आकाश मार्ग से चले। इधर कनकश्री के भाई विद्यु दंष्ट्र और सुदंष्ट्र बदला लेने की भावना से इनकी नगरी पर घेरा डाले हुए थे और चित्रसेन सेनापति नगरी की रक्षा कर रहा था। कनकश्री ने बहुत कहा कि हमारे भाईयों को न मारो परन्तु क्रोध में आकर अनन्तवीर्य ने उन दोनों को मार डाला। नगर में अपराजित और अनन्तवीर्य का बड़ा स्वागत हुआ दिग्विजय के बिना ही सब राजाओं ने अपने आप इनकी अधीनता स्वीकृत
कर ली। अन्य समय परिवार की स्त्री के मुख से अपने विवाह का समाचार सुनकर ४६-६६ । ६४-६६
कनकश्री ने विचार किया कि पिता के वंश का नाश और लोकोत्तर निन्दा का कलंक आंसुओं से नहीं धोया जा सकता इसलिये मुझे घर का परित्याग करना चाहिये। अन्त में उसने अपना यह विचार अपराजित और अनन्तवीर्य के समक्ष प्रगट किया तथा चार हजार कन्याओं के साथ स्वयंप्रभ जिनेन्द्र के पास प्रायिका की दीक्षा
ले ली। इधर अपराजित बलभद्र ने अपनी पुत्री सुमति के स्वयंवर की घोषणा ६७-११७ ६६-७१
की । देश विदेश से राज कुमार पाये । सुमति ने बड़े वैभव से स्वयंवर सभा में प्रवेश किया। सब राजकुमार उसकी ओर निमिमेष नेत्रोंसे देख रहे थे। इसी के बीच एक देवी ने जो कि सुमति की पूर्व भव की बहिन थी उसे संबोधित करते हुए उसके पूर्वभव कहे। उन्हें सुन सुमति मूछित हो गई। सचेत होने पर उसने उस देवी का
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