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श्रीशान्तिनाथपुराणम् नवाम्भोव्हविकजल्क पिञ्जरा भ्रमशालयः । अपि मध्येवनं तेपुः स्मरेषव हवाध्वगान् ।।५।। पटूभवति मन्दोऽपि नूनं कालबलानियतः । अनङ्गोऽपि पराजिग्ये मधौ सति महात्मनः ॥५८॥ 'लोखताराकिरीक्याविचक्रनाम्नां वियोगिनाम् । त्रियामाः२ प्रत्यहं जामुः कारुण्यादिवतामयम् ।।५।। धनवाध्युषितामाशां पवनायशिव भानुमान् । व्रजन्धितपते स्मालं करंस्तीवरदक्षिणः ॥६॥ मपोर्माङ्गल्यविन्यस्तप्रदीपोत्करशया । नूनं न चम्पकान्यापुखगन्यान्यपि षट्पदाः ॥६१।। विमयो निर्गुणस्यापि गुणाधानाय कल्पते । सुरवः पुष्पितोऽलीनां रवैः 'कुरबकोऽप्यभूत् ।।६२॥ न्यायि स्त्री कर्णे'चूतस्य नवमञ्जरी । वेगमानाय्यपि स्मारं मधुना नवमंजरी ॥६३।। प्रध्यासतोपोगाय वमान्तं वनितासखाः । कोका इव विवाप्यात युवानः कामसायकैः॥६४॥ उमाकुहासेन तापुस्तयस्तम । दधाना मधुरा रेजुः सविलासां मधुश्रियम् ॥६५॥
से सहित लाल वस्त्र को धारण करने वाला यह जगत् ऐसा जान पड़ता था मानों राग से ही रचा गया हो ॥५६॥ नवीन कमलों की केशर से पीली पीली दिखने वाली भ्रमर पङ्कियां वन के मध्य भाग में भी काम के वारणों के समान पथिकों को संतप्त कर रही थीं ॥५७।। यह निश्चित् है कि काल के बल से सहित मन्द व्यक्ति भी समर्थ हो जाता है इसीलिये तो काम ने शरीर रहित होकर भी वसन्त के रहते हुए महात्माओं को पराजित कर दिया था ॥५८॥ चञ्चल नक्षत्रों ( पक्ष में आंख की चञ्चल पुतलियों ) से सहित रात्रियां, विरही चकवों की पीड़ा देखकर दया से ही मानों प्रतिदिन कृशता को प्राप्त हो रही थीं ॥५६॥ जिस प्रकार धन की इच्छा करने वाला अदक्षिण-अनुदार राजा धनदाध्युषितां-धन देने वाले पुरुषों से अधिष्ठित दिशा की ओर जाता हुआ उसे बहुत तीक्ष्ण करों-टेक्सों से संतप्त करता है उसी प्रकार धन की इच्छा करते हुए के समान अदक्षिण-उत्तरायण का सूर्य धनदाध्युषितां-कुबेर से अधिष्ठित उत्तर दिशा की ओर जाता हुआ तीक्ष्ण करों-किरणों से संतप्त कर रहा था।॥६०॥
भ्रमर उत्कट गन्ध से युक्त होने पर भी चम्पा के फूलों के पास नहीं जा रहे थे उससे ऐसा जान पड़ता था मानों वे मधु-वसना के मङ्गलाचरण के लिये रखे हुए दीप समूह की शङ्का से ही नहीं जा रहे थे ॥६१।। वैभव, निर्गुण मनुष्य में भी गुण धारण करने के लिये समर्थ होता है इसीलिये तो फूलों से युक्त कुरवक वृक्ष भी ( पक्ष में खोटे शब्द से युक्त पुरुष भी ) भ्रमरों के शब्दों से सुख-सुन्दर शब्दों से युक्त हो गया था ॥६२।। स्त्री जनों ने कान में आम की नवीन मञ्जरी धारण की थी और वसन्त ने वृद्ध मनुष्य को भी काम की नौवीं-अवस्था-जड़ता को प्राप्त करा दिया ॥६३॥ दिन के समय भी काम म के वारणों से दुःखी युवाजन चकवों के समान उपभोग के लिये स्त्रियों के साथ वनान्त में निवास करते थे ॥६४॥ उस समय उत्पन्न होने वाले मुकुलों-बेड़ियों रूपी हास से उपलक्षित लता
चञ्चलकनीनिकाः पक्षे चञ्चलनक्षत्रा: २ रात्रय: ३ काश्यम् ४ धनदेन कुबेरेण-अध्युषिता-अधिष्ठिता ५धनमिच्छन्निव ६ अनुदारः पक्षे उत्तरदिक स्थितः ७ सुष्ठुरवः शब्दो यस्य तथाभूतः ८ कुत्सितः रवीयस्य कुत्सित् शब्द युक्तोऽपि सुख: शोभनशब्दयुक्तोऽभूत् इति निरोधः । परिहार पक्षे कुरवक वृक्षः ९ आम्रस्य १. वृद्धोऽपिजन:मधुना-वसन्तेनस्मारं कामसम्बन्धिनं वेणम् आनादि-प्रापितः ।
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