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मेरु मंदर पुराण
अरे कळ लरसर् कोमानिरु कैय दयदि सेघिर । कुरविला दोतशोगं कुवेरन दिरुक्कै पोलु ॥ निरंनार पुगैईरंडा रोबोंदु नॉडगंडू । मरुगु मानदिगळ पोंडू वळं गु माइरुत्तदामे ॥ २६ ॥
अर्थ - मधुर स्वर को उत्पन्न करने वाले कंठों से युक्त शूरवीर राजाधिराज चक्रवर्ती की राजधानी का वर्णन कहां तक करू ? वहां पर धन धान्य से परिपूर्ण कुवेर के नगर व अल्कापुरी के समान अत्यन्त सुशोभित वीतशोक नाम का नगर है । क्रम से इस सुन्दर नाम को प्राप्त हुआ। यह वीतशोक नगर १२ योजन लम्बा व ६ योजन चौड़ा है। वहां पर सदैव जल से परिपूर्ण नदी के प्रवाह के समान जलधारा बहती रहती है और प्रजाजनों के आवागमन के लिये एक हजार मार्ग व गलियां निर्मित हैं ।
भावार्थ--सुन्दर सुमधुर शब्दों से उत्पन्न होनेवाले वीर-कंठों से युक्त राधाधिराज चक्रवर्ती की राजधानी का वर्णन कहां तक करें ? उसका वर्णन करना मेरे द्वारा अशक्य है । फिर भी यथाशक्ति उसका वर्णन करता हूँ । धन-धान्य से परिपूर्ण कुवेरपुरी अथवा अल्कापुरी के समान वीतशोक नगर की शोभा अत्यन्त सुहावनी प्रतीत होती है । यह नगर १२ योजन लम्बा व & योजन चौड़ा है। पानी से भरी हुई छोटी २ नदियाँ सदैव बहतो रहती हैं। और सभी प्रजाजनों के आने-जाने के लिये १००० एक हजार मार्ग व गलियां बनी हुई हैं।
रुव तलेवंतीह मूंड्र नूररिकन कोई । सेरिमलर् सौ कुड्रम वावियु सेप्पिनन्न ।
safer गुणिपट्ट वायिरम् सेरिपारि । श्रवदोडिसँद पातार गुरिणत्त् वाधिरंगडामे ॥ २७॥
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अर्थ -- भगवान् सर्वज्ञदेव के ३६० मन्दिर हैं । उस नगर के चारों ओर परकोटे
बने हुये हैं और दरवाजों पर तोपें लगी रहती हैं। नगर के चारों और छोटी छोटी पहाड़ियां तथा कुइयां हैं, जिनकी गणना करना असंभव है । उस कोट के चारों ओर ३६० कुयें हैं । वहां पर गड़रियां आदि जातियों के रहनेवालों के ६८००० साठ हजार घर हैं । इन सभी स्थानों को मिलाकर साठ हजार तथा छोटे २ ग्रामों व पाड़ी नाम के प्रसिद्ध देहात ७००००
सत्तर हजार हैं ।
भावार्थ-उस वीतशोक नामक नगर में ३६० मन्दिर हैं। तोपें लगी हुई हैं। वहां पर छोटे २ तालाब, पहाड़, उपवन और कुयें की संख्या लगभग ३६० है ।। २७ ।।
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जुनूरिट्टि वायळ, नूरागु पूळं । तु जिला वलिपपीठ माइसबुक्क मन्न ।।
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नगर के चारों और बने हुये हैं। उन कूपों
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