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________________ man. १८] मेरु मंदर पुराण वहां सात पैंड मागे और सात पीचे मोर एक बीच में ऐसे पन्द्रह पन्द्रह कर दो सौ पच्चीस कमलों की रचना करते हैं। माकाश तथा दिशायें चार प्रकार के देवों द्वारा जय-जयकार का शब्द । एक हजार सूर्य मंडल का पारा सहित किरणिनिकाधारक अपना उद्योत कर सूर्य मंडल का तिरस्कार करता हा धर्म चक्र आगे चले । अष्ट मंडल द्रव्य । इस प्रकार चौदह अतिशय प्रकट होते हैं । भगवान के अठारह दोष, क्षधा, तष्णा, जन्म, जरा, मृत्य, रोग, शोक, भय, विस्मय, राग, द्वेष, मोह, अरति, चिंता, स्वेद । खेद, मद, निन्दा नहीं होते । इस कारण सदैव उनकी वेदना व स्तवन करना चाहिये । ये अरहंत सुख का करने वाला है। इनके अनन्त नाम है और इन्द्र भक्ति के वशमय भगवान का एक हजार आठ नाम का स्तवन करते हैं, तथा अल्प सामर्थ्य के धारक अपनी शक्ति प्रमाण, अरहंत भगवान की पूजन स्तवन तथा नस्कार करते हैं । इस प्रकार संक्षेप में भगवान के पांचों कल्याणों का विवेचन किया गया इस प्रकार समवशरण का वर्णन किया है । उस समवशरण में भगवान के बिहार में भवनवासी,ज्योतिषी, व्यंतर, कल्पेन्द्र इस प्रकार चारों प्रकार के देवेन्द्र त्रायस्त्रिपरिषद प्रात्म रक्ष लोकपाल, पार्णव, प्रकीर्णक, अवयोग, किलविष, ऐसे दस प्रकार के देव रहते हैं । इसमें व्यंतर और ज्योतिषी देवों में प्रायस्त्रिश और लोकपाल देव नहीं रहते बाकी चार प्रकार के देव भगवान के बिहार काल में पाते हैं । मरिणइला मलयुमिन बनप्पिला वनमुमिले। करिणइला निलमु मिल कर बिला काडमिन्ने । येनिइलामगलिरिल्ल येळगिला मैंद रि। तुनिविला तुरवुमिल्ने तूतिला बोळक्क मिल्लं ॥६॥ अर्थ-वहां नव रत्न मणि केसिवाय पर्वत नहीं रहते हैं। सुन्दरता रहित उपवन नहीं रहता है-धन्य-धान रहित खेत नहीं रहता, गन्ना रहित देश नहीं है, रूप रहित स्त्रियां नहीं है । रूप रहित पुरुष नहीं है, सम्यक दर्शन रहित तपस्वी नहीं है. हमेशा परिशुद्ध चारित्र बाले व्यक्ति रहते हैं। भावार्थ:-प्रन्थकार ने इस श्लोक में गन्ध मालिनी देश के स्त्री और पुरुषों का और वहां स्थित पर्वत-भूमि उद्यान आदि का भी वर्णन किया है । उस देश में रत्न मरिणमय पर्वत है, अत्यन्त रूपवती स्त्रियां रहती हैं । उसो प्रकार अत्यन्त. सुन्दर कामदेव के समान पुरुष रहते हैं, तथा धन्य धान्य से समृद्धि शाली वहां की भूमि है .सुन्दर फल और पुष्पों से भरे हुए हरे-भरे अनेक प्रकार के उद्यान हैं, कामदेव के धारण करने वाले अत्यन्त सुन्दर पुरुष और सम्यक दर्शन से युक्त श्रावक हमेशा रहते हैं । चारित्र से रहित वहां कोई साधु नहीं रहते । कारण इसका यह है कि जहां सदैव चतुर्थ काल बरतते हैं वहां अधिक से अधिक पुण्यवान स्त्रियां और पुरुष रहते हैं और उस स्थान में नहानतीर्थकर व श्रेषठ शलाका पुरुषों का जन्म होता रहता है क्योंकि वहां भूमि पुण्यमय होने के कारण सदैव पुण्य पुरुष ही उत्पन्न होते हैं जिस जीव ने पूर्व जन्म में अतिशय पुण्य किया हो और जिसने अतिशय निरतिचार पुण्य को पालन कर अत्यन्त घोर तपश्चरण किया हो ऐसा पुग्यशाली जीव उस भूमि में उत्पन्न होकर पूर्व जन्म के पुण्योदय से मन पूर्वक सुख भोगकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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