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________________ ४६० ] मेरु मंदर पुराण तिरिविद तोर लंच मुरुक्कि पेरारंवत्तु । मरु मानिरं वायु माट्रोना उदयत्ताले ।। १३३५॥ अर्थ- सत्य स्वरूप को जानने वाले सम्यकदशन की शुद्धि से उत्पन्न होने वाले घातीश्रघाती कर्मों को जोते हुए अहंत परमेष्ठी में, तथा निश्चय व्यवहार रत्नत्रय मार्ग में भक्ति रखना, हेयोपादेय से समताभाव रखना, धर्मध्यान व शुकल ध्यान से इस लोक और परलोक में अपने को उत्पन्न होने वाले सुख की इच्छा न करते हुए और पाप पुण्य के नाश करने के लिये प्रयत्न करना, मोक्ष पुरुषार्थ में ही निमग्न होना, सत्पात्रों को प्रौषधि, शास्त्र, अभय और आहार चार प्रकार के दान देना, देव पूजा, गुरु उपास्ति, शास्त्र – स्वाध्याय आदि षट् क्रियाओं का पालन करना, शील पालना यह सब उत्तम भोग भूमि का कारण है ।। १३३५ । वंचनं मनत्तु वैत्तु वाकोडु कार्य वेराय । नजन वोळुक्कं पट्रि नल्लोळु कळित लालु || जिडामूडमादि मूंडू मिच्चुदयत्तालुं । ❤ सेम् संवेव् विलक्कि लुयिक्कु मायुगं सेरिक्कु मिक्के । १३३६ । अर्थ- मायाचार करना, कपट को मन में धारण करना, मन, वचन काय से विष के समान हिंसादि दुष्ट क्रियाओं का पालन करना, अहिंसादि मार्ग को नाश करने वाली लोक मूढता, पाखंड आदि मिथ्यात्व के उदय से संज्ञी असंज्ञी ऐसे तिर्यंच गति में उत्पन्न होता है । ।। १३३६॥ Jain Education International मैयां तेळिवि लागुं वें वर् गुणतुळार्वम् । सेम्मै वानू करुण सिंह युट् कलक्क मिन्मै || इम्मंयाम् भोग वेडां मुनिवर कट कीद लादि । तम्मिनादि भोगभूमि मक्कळा युगं कडामे ॥ १३३७।। अर्थ-दर्शनविशुद्धि रहित मायाचारी करने से भोगभूमि में रहने वाले तिर्यंचगति का कारण होता है । इसलिये मायाचार रहित सम्यक्त्व पूर्वक आचरण करने से कर्मभूमि के मनुष्य की प्रायु का बंध होता है ।। १३३७ ।। उत विरगंगळ माय मोंड्रिड ळंदभूमि । · तिरिक्कय वायु वांगु सेपिय गुरगंगळ, मायं ॥ पोरुत्त मिल्लाद पोदु मंद मद्दिमंगळागिल । वत्त मिल् करुम भूमि मक्कळा युगंगळामे ।। १३३८ ।। अर्थ - धर्मध्यान से उत्पन्न होने वाले सम्यक्त्व रुचि से संसार संबंधित पंचेंद्रिय विषय सुखों से वैराग्य को प्राप्त होकर क्षमाभाव धारण कर समता भाव से देवाधिदेव For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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