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मेर मंदर पुराण
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अर्थ-जीव नाम की कोई वस्तु नहीं है, पाप पुण्य नहीं है, स्वर्ग मोक्ष नहीं है, एक बार जीव मरने के बाद उसका पुनर्जन्म नहीं है-ऐसा कहने वाले नास्तिक जीवों को नरक में तांबे को गलाकर उनके मुख में डाल देते हैं। और भगवान के द्वारा कहे हुए पागम का तिरस्कार करके सम्यक्त्व हीन होकर अधर्म का प्रचार करने वाले तथा सम्यक्चारित्र मादि कुछ नहीं है ऐसा कहने वाले को नारका जीव अवर्णनीय दुख देते हैं । ६५२॥
पौयुरै पुनदु पोरुळ वांगि नवर्गळ कंगम् । कैयुगिरि नूशीय चे कायंद शेरिप्पंवार ॥ वयं पुगळ माववर वैदनगळ कारी।
नयुक्कि वायिर पेय निड, सुळलगेंड्रार ॥५३॥ अर्थ-असत्य वचन को बोलकर दूसरे की संपत्ति को हरण तथा उपार्जन करके प्राजीविका करने वाले लोगों को नरक में पुराने नारकी छोटी २ सुइयों को गर्म करके उनके नाक में चुभा देते हैं । महातपस्वी मुनियों की भक्ति स्तुति करने वालों की निंदा करने वालों को नरक में नारकी जीव उनका रक्त मौर विष को उनके मुख में डालकर उनको मार डालते हैं ।।६५३॥
वोळ विकनै येळित्तुड नळ क्कुरणर् रत्तार । तुळ क्कन लिय पुड पुडत्तु विळ गिड्रार ॥ वळ क्किनवर् नन्नेरि यिन् मद्दिगे येडुत्तु ।
विळ प्पर वदुक्क विनये कोडिय देंवार ॥६५४॥ अर्थ-सम्यकचारित्र को नाश । र कुमति, कुश्रुति ऐसा धर्म का प्रचार करने वाले जीवों को नरक में नारकी जीव उनके शरीर में शस्त्रों से घाव करके अनेक प्रकार के छोटे २ कीडे उत्पन्न करके उनको अत्यन्त दुख देते हैं । सत् शास्त्र तर्क आदि प्रमाण द्वारा सिमागम की निंदा करने वाले उस दुराचारी के शरीर को खंड २ करके महान कष्ट देते हैं ॥४|
मिक्क येगुळि कनली इटटु नगर गुहार । सेक्कुर लिडंपल तिलत्ति नेरि गेडार ।। चक कर संबंद पिन नरत्तिने मरंदा ।
रेक्कत्तुन मिक्क तुयरत्तिड युळेपार ॥५५॥ अर्थ-प्रत्यन्त क्रोध से दूसरे का घर जलाना, घास के ढेर को जलाना प्रादि पाप के कारण जैसे घाणी में तिल को पेल देते हैं उसी प्रकार नरक में घाणी में डालकर पेलते हैं । राजा की प्राज्ञा भंग करके इतर मोगों की संपत्ति हरण करने वालों को प्रसह्य बनाए देते हैं ॥५ ॥
कोले कळव पौ पोरळि नाश इन मगिळं वा । मलइन् मिस बेटेन उपट्ट बिलगेंडार ॥
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