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________________ T V - - - - - ३४८ ] मेक मंबर पुराण अरुमरिण यार मारिरवर मनंग नन्नार् । मरुविय पुलत्त चिदै माशुन मन्न नीरा ।। दरम नल्लूरुचि येन्नू सादुविन पादं सेरंदु। तिरुवर मरुळ केटोर पुलंगन मेल वेरुमु चेंड्रार ।।८४६।। अर्थ-इस प्रकार समय को व्यतीत करते हुए वे दोनों यौवनावस्था को प्राप्त हुए । कई दिनों के बाद उस हस्तिनापुर नगर के समीप के उद्यान में धर्मरुचि नाम के मुनिराज विहार करते २माए । मुनिराज के प्रागमन के समाचार सुनकर इन दोनों ने वहां जाकर भक्ति पूर्वक नमस्कार किया और मुनिराज ने इन दोनों को धर्मोपदेश दिया। उन दोनों ने धर्मोपदेश सुनकर संसार के सुख को क्षणिक समझा और भोगोपभोग से विरक्त हो गये।।८४६।। मादिरै सुळंद्र, मट्टिर पुलंगन मेल् मट्रि वटै।। यावं तुरक्क माट्रिन् सुळट्रिय तगलु मागिर ॥ काट्रि यम् मनत्तु मी कडला तेळिवे याकु । मादल साल तुरवेंड्रोदु मरु मरंवळिक वेंड्रार् ।।८४७॥ पर्थ-तदनन्तर वह प्रीतिकर राजकुमार और मंत्री का पुत्र विचित्रमति ने मुनिराज को नमस्कार करके पूछा कि हे प्रभु! मद्यपान किया हुम्रा मनुष्य जैसे उसके नशे में मनमाने माचरण करता है, उसी प्रकार मिथ्यात्व कर्म के उदय से पंचेन्द्रिय सुख के लिये हेयोपादेय वस्तु को न समझकर इस संसार में यह जीव भ्रमण करता है । उस मिथ्यात्व को स्याग करके सम्यक्त्व को धारण कर जिन दीक्षा ग्रहण करके तपश्चर्या सहित ध्यान अग्नि से कर्म का क्षय करने से हेयोपादेय को जानने योग्य विशुद्ध परिणाम की प्राप्ति होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिये आप जिन दीक्षा देकर हमारा उद्धार करो। ऐसी दोनों ने प्रार्थना की ।।८४७॥ मावव नरुळि चित्ति वरुकमट्रि वर्गट्ट केन्ना । पोवनि कुजि वांग पुनरं दु मादवत्तिर् सेंड्रा॥ रादरम पन्नु नाम तरसिळं कुमरन पालिन् । माविरं पिलगु नल्ल वार्ते मामुनिव नानान् ॥८४८॥ प्रथं-उस समय धर्मरुचि महाराज ने दोनों को स्वात्मलब्धि धर्मवृद्धि ऐसा आशीर्वाद दिया। पौर राजा तथा मंत्री के पुत्रों को दोक्षा दे दी । दीक्षा ग्रहण करने के बाद यह प्रीतिकर मनि अत्यन्त निर्मल तपश्चरण के फल से लोगों के अत्यंत प्रिय हो गये। ये प्रिय क्यों हो गये थे क्योंकि उनको ऋद्धि प्राप्त हो गई थी ॥८४८।। मुनि इळ कळिरु पोल वार् मुगिळ् मुले तडंगट शेवाय । बनिदेय रोडं बानोर मडंवैयर् मगिळू माउस ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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