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मेर मंदर पुराण मर मुळिदुरुवि योंबि कवळगळ् वांगा नींग ।।
वर कळ लरसर कोरि यरिंदव हनति नारे ८३६॥ अर्थ-इस प्रकार व्रती पुरुष नौति विरुद्ध ऐसी अन्य परस्त्री के साथ भोग करके, विषयभोग भोगने के बाद मन में पश्चाताप करके खडा होकर अपनी प्रात्म-निन्दा करते हुए ऐसी प्रतिज्ञा करता हो कि मैं पागामी ऐसा काय नहीं करू गा । उसी प्रकार वह हाथी मनुष्य के समान अपने निंद्य माचरण करने के संबंध में विचार करता है कि मैंने निंद्य तिर्यंच गति में बन्म लिया है। वह मात्म-निंदा करते हुए तथा अब आगे मैं इस प्रकार का कोई पार कर्म नहीं करूंगा ऐसा निश्चय करके वह हाथी खडा रह गया। उस समय वहां महावत ने मांस मिश्रित रखे हुए पाहार को हाथी द्वारा न छूने पर यह सारी बातें उस महावत ने राजा रत्नायुध को जाकर कही कि वह हाथी चारा नहीं ले रहा है ।।८३६॥
मन्नन बंदमच्च रोड मरंदरि पुलबर तम्मै । येन्निदर् कुद्रदेन्न बियादि मट्रि यादु मिल्लै ॥ मिन्नुमिळदिलंगुम पूनोय् विलगत् पोनि वेळ ।
मुन्निनार पिरप्पु नरं व दुःखु मिव्वुइपि नड्रार् ॥८४०॥ अर्थ-यह समाचार सुनकर राजा रत्नायुध तथा मंत्री और वैद्य आदि हाथी के पास माये और वैद्य से मंत्री ने कहा कि इस हाथी को कौनसा रोग हो गया ? तब वैद्य ने हाथी के रोग की चिकित्सा की । चिकित्सा के बाद वैद्य कहता है कि इस हाथी को कोई रोग नहीं है मोर यह दीर्घ श्वास लेता है। मेरे समझ में इस हाथी को पूर्व जन्म का जाति स्मरण हो गया है। ऐसा इसके देखने से प्रतीत होता है ।।६४०॥
अयोडु वादपित्तं विकारत्तै यडदंदिल्लै । मैग्लुं वैय्य दोंड मादि दर् कद्र विल्लै ॥ कैमल इवन के यूनिर कवळंगळू वैत्त पोदि ।
नय्य मोंडिडि वांगि नरिंददु पिरप्पै येंड्रार ॥८४१॥ अर्थ-वह वैद्यराज उस राजा से कहते हैं कि इस हाथी को कोई रोग नहीं है। और कोई विषधारी जीव ने भी इस को नहीं काटा है। मेरे विचार से ऐसा प्रतीत होता है कि इसको पूर्व जन्म का जाति स्मरण हो गया है यदि इसकी परीक्षा करनी है तो मांस रहित मोजन देकर परीक्षा करनी चाहिये ।।०४१॥
तेनुलां तारि नानु मप्पडि शंग वैन्न । मनि लायतूय नल कवळंग लुळयर् ।। भानमा वांगक्कंड मन्ननु वियदु पिन्न । कारिपन मायुनिवन ट्रम्ने कंडडि पमिदु सोन्नान् ।।८४२॥
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