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मेक मंबर पुराण
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नो सौ थे। संपूर्ण सम्यक् दृष्टि श्रावक छह हजार आठ सौ थे। नव सम्यक् दृष्टि पुरुष तीन लाख चौसठ हजार थे। सब श्रावक दो लाख थे। श्राविका चार लाख थी । आर्यिका एक लाख तीन हजार थीं।
श्री विमलनाथ भगवान के गण में श्रेष्ठ रहे हुए मेरु मंदर दोनों अपने कर्मों को नाश करने के लिये सोच कर उस गण को छोड़कर एक पर्वत शिखर पर गये।
तदनंतर दशधर्मों मे लीन होकर, पंच समिति, त्रिगुप्ति बाईस परीषहों को को निरतिचार पालन करते हुए आत्म-भावना में लवलीन होकर अप्रमत्त गुणस्थल में बढकर सप्त प्रवृत्तियों को नाशकर क्रम से प्रथम द्वितीय शुक्ल ध्यान से घातिया कर्मों को नाशकर केवली होकर अनंत चतुष्टय को प्राप्त हुए ।
तब तुरंत ही चतुर्णिकाय के देवों ने आकर केवलज्ञान की पूजा की। तब मेरु और मंदर दोनों ने अद्यातियां कर्मों को नाश करके मोक्ष पधार गये। चतुरिणकाय देव निर्वाण कल्याण की पूजा करके अपने २ स्थान चले गये।
इस प्रकार मेरु और मंदर पुराण समाप्त हुआ। जो भव्य प्राणी इस पुराण को पढता है व सुनता है वह क्रम से संसार से विमुक्त होकर शीघ्र मुक्ति को प्राप्त होता है ।
श्रीपतिर्भगवान् पुष्पाद् भक्तानां वः समीहितम् । यद्भक्तिः शुल्कतामेति भुक्तिकन्याकर गृहे ॥
शुभं भवतु
शंभवतु
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