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________________ ३०० ] मेरु मंदर पुराण ही ग्रहण करोगे तो यह मिथ्या है । इससे वस्तु की सिद्धि नहीं होती। प्रत्येक वस्तु कथंचित् सत् है और कथंचित् असत् है ।।७०४॥ उंडेन पट्ट देक इल्लया सुरुव मिड़े। लुंडेन पट्टवंड्र यामिदं उलग मेल्ला ॥ मुंडेन पट्ट देके इल्लया मारें नेन्नित् । वंडुनुं कौदै यावाळ् मगळिला उरुव मंड्रो ॥७०५॥ अर्थ-ऐसा अस्ति कहने वाले द्रव्य को नास्ति न कहना इससे व्यवहार नहीं रहेगा और तोन लोक में रहते वाले सभी द्रव्य एक ही होंगे, ऐसा होगा। अस्ति रूप वस्तु को नास्ति रूप स्वभाव कैसे कहा जायेगा? इस प्रकार का यदि प्रश्न होगा तो इस संबंध में प्राचार्य दृष्टांत देते हैं कि एक मनुष्य की बहिन दूसरे की अपेक्षा पत्नी है। इसी प्रकारे दूसरे की अपेक्षा लडकी होने के कारण अस्ति हो गई और दूसरे को अपेक्षा नास्ति हो गई। एक की अपेक्षा से वह स्त्री माता है । इस कारण वह नास्ति हो गई। इस प्रकार एक ही द्रव्य में व्यवहार न होगा तो संसार में सभी वस्तु बिना व्यवहार के एक ही होगी। यदि वस्तु में व्यवहार नहीं होगा तो सारी वस्तु गडबड हो जायेगी ।।७०५।। अत्तियां कुंभ मेंड्रा लुलगला मडमवायो। वैत्ततन् निडत्त देनिन्न मटेंगु कुंभ मेडाल ।। वैत्तदन् निडत्त देनिन मटेंगु मिलामै याले । नत्तियुडत्तन् रागि लुलग नर् कुंभ मामे ॥७०६॥ अर्थ-घट अस्ति रूप है क्योंकि घडा सभी जगह न रहने के कारण उस समय वहां रहने के कारण वह घट अस्ति रूप हो गया। और वही घट दूसरों की अपेक्षा से नास्ति रूप हो गया। क्योंकि घट स्वक्षेत्र की अपेक्षा से अस्ति हो गया। और परक्षेत्र की अपेक्षा से नास्ति हो गया। इस प्रकार प्रस्ति नास्ति नहीं होगा तो एक ही घट तीन लोक में है ऐसा होगा। इसलिए स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्त्रकाल, स्वभाव की अपेक्षा से द्रव्य, अस्ति रूप एवं परद्रव्य की अपेक्षा से नास्ति रूप होता है ।।७०६॥ इदुवदु वलामै युंडै लिदु वदु वेन्नलागु । मिदु वदु वलाम इनड़ लिदु वदु विलामें याले ।। पोदु प्रोडु विशेडयिडि पोम पोरुळ पोन पिन्न । विवि विलक्कि लामै याले शूनियमांगु वेदे ॥७०७॥ अर्थ-हे राजा किरणवेग सुनो! वस्तु ऐसे बतलाया हुआ जो द्रव्य है वह यदि मास्ति न होगा तो द्रग्य कूटस्थ होगा । एक २ वस्तु में रहने वाले विशेष गुणों का और उस द्रव्य का प्रभाव हो जाता है। इस प्रकार प्रभाव होने से अस्तित्व व नास्तित्व यह साध्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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