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मेर मंदर पुराण मुन्न कत्ति निरपवन मुरि कनत्तु निडवनु । पिन्ने कमत्तु पिरप्प गर्नु पिरिदु पिरिये पुरविल्लै ॥ येन्नि माददु विइब कोंड विड मोर बन् ।
दृन्नक्कानो मावलिनु सामाद ब त माट्रे॥६६२॥ अर्थ-भूतकाल में मरण करके वर्तमान काल में रहने वाला और भविष्यत काल में उत्पन्न होने वाला यह समय मापस में सम्बर नहीं होता. ऐसा यदि कहा जावे तो संसार का ही प्रभाव हो जाय तो जन्म मरण का भी प्रभाव हो गया तो जीव का भी प्रभाव हो गया और जब जीव का प्रभाव हो गया तो मोक्षमार्ग का भी प्रभाव हो जायगा ॥६६२॥
दानं शीलं तवं बरुवं क्या करमा दृडमादिल । बारिपन मनिर् पिरंदिरंदु बंदु बोड़ पेहमोरु बन् । ट्रानं किलनेन् पराएं तर मादरुत्त वोटिन पेर् ।
ट्रानेडार सोर् पोळिलारो बीड़ पेरुवारे ॥६६३॥ अर्थ - दान करने से, शील, संयम, व्रत, तप मादि से, जीव दया पालन, जीवों की रक्षा करने से, व्रत उपवास प्रादि शुभाचरण से जीव मरकर देवगति में जन्म लेकर वहां के सुख का अनुभव कर वहां की देव पर्याय व आयु को पूर्ण कर मध्य लोक में प्रार्य क्षेत्र में अर्थात्
रत क्षेत्र में जन्म लेकर तपश्चर्या करके कर्म का क्षय करके वह जीव मोक्ष की प्राप्ति करता है। यह पागम का कहा हुअा सर्वथा अनित्य है । ऐसा कहने वाला किसी मत का कोई शास्त्र नहीं है अर्थात् संसार नाम की कोई वस्तु ही नहीं बन सकती ॥६६३।।
येलवर्गयु केटुळ्ळत्तिल बवं कनत्तुदुवित्तु । बने वरुमि सेन्दानम् मुडियं कनत्तु वंददर्को । वेल्ला वगैयु मिद्राय बंदु मवर्को वोडा।
निल्ला दंवत्तदु पोव नियल्वे निद्रवदर्के निल् ॥६६४॥ अर्थ-समस्त मतों की दृष्टि से विचार करके देखा जावे तो यह मागम पार्ष पर. म्परा से विरुद्ध पडता है । एक समय में रहने वाले जीव का नाश दूसरे समय में माने वाले बीव को मोक्ष होता है यदि ऐसा कह दिया जाय तो पहले समय में नाश हुमा जीवपना दूसरे समय में कहाँ से पा सकता है? ॥६६४।।
प्रदत्तदन्नप्पिन वरुन गंद मवर्कु वीड़ तानागिल । मुन्दै कनंकोरवन् शंदु मुंग्विारेन पयन् पेदार ॥ सिदिप्पिलान् द्रवन् तन्न यरिया ममोर् सेरिविद्वान् । बदु परिदुम् वोडवू पान्म किंब पाळवी ॥६६॥
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