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________________ मेह मदर पुराण ने कहा कि ऐसे मायाचारी चोर को एक थाली भरकर गोबर खिलाना चाहिए । अथवा दस पहलवानों को बुलाकर मुक्का घूसा लगवाना चाहिए। और उसकी सारी सम्पत्ति लेकर नगर से बाहर निकाल देना चाहिए। यह सुनकर सिंहसेन महाराज ने अपने कर्मचारियों को बुलाकर जैसा सत्यघोष ने कहा उसी प्रकार उन्हीं को दण्ड दिया और उनके सारे कुटुम्ब परिवार वालों की सारी सम्पत्ति छीन ली और नगर के बाहर निकाल दिया। इसी प्रकार सत्यघोष मन्त्री भद्रमित्र के रत्नों के अपहरण करने के कारण कुछ समय के लिए पागल हो गया । और तदनंतर राजा के प्रति अनंतानुबंधी निदान करके यह विचारा कि इसका बदला मैं राजा सिंहसेन से लूगा । और वह प्रार्तध्यान से मरकर राजा सिंहसेन के खजाने में आगंध नाम का विषधर सर्प हो गया। समय पाकर सत्यघोष मन्त्री के स्थान पर धर्मिला नाम के ब्राह्मण को मंत्री पद दिया गया। तत्पश्चात वह भद्रमित्र वणिक घमता २ एक बार विमल गांधार पर्व चला गया तो वहां देखा कि वरधर्म नाम के मुनिराज वहां तप कर रहे थे। उनका धर्मोपदेश सुना। चतुर्थ अध्याय तदनंतर वह भद्रमित्र अपने घर आया और चार प्रकार के दान प्रादि वह देने लगा। तब उसकी माता सुमित्रा ने कहा कि तुम इस प्रकार यदि दान देकर सम्पत्ति खर्च कर दोगे तो एक दिन सभी धन खत्म हो जावेगा। तब भद्रमित्र ने माता की बात नहीं मानी और वह बराबर दान देता रहा । इसको दान देता देखकर वह सुमित्रा प्रातरौद्र ध्यान करने लगी और वह मर गई । और अतिंग वन में ब्याघ्री उत्पन्न हुई। __ एक दिन वह भद्रमित्र उस अतिंग वन में चला गया। वहां वह व्याघ्री तीन रोज से भूखी बैठी थी, तो तत्काल उस भद्रमित्र को देखते ही पूर्वभव के बैर के कारण उसपर झपटी और मारकर खा गई। भद्रमित्र शुद्ध परिणामों के कारण मर कर भोगभूमि में गया और वहां से आयु पूर्ण करके पूर्वभव के स्नेह के कारण रामदत्तादेवी के गर्भ में पाया और पुत्ररत्न के रूप में उत्पन्न हुआ। उस पुत्र का नाम सिंहचन्द्र रखा गया। क्रम से वृद्धि को प्राप्त होने पर वह एक जैन उपाध्याय के पास भेजा गया। वहां धर्म व अनेक शास्त्र-शस्त्र कला आदि में निपुरण होकर घर आया और यौवनावस्था प्राप्त होने पर उसका विवाह हो गया। तदनंतर उस रामदत्ता के एक दूसरा पुत्र और उत्पन्न हुआ । उसका नाम पूर्णचंद रखा गया । एक दिन सिंहसेन महाराज अपने खजाने में चले गये। जाते ही वह अगधनाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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