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________________ १०] मेह मंदर पुराण ____ इस बात को सिंहसेन राजा ने झूठ मानकर कोई विचार नहीं किया। तदनन्तर वह भद्रमित्र प्रतिदिन यही कहता रहा कि जिस प्रकार एक बहेलिया चिडिया को पकड़ने के लिये अपनी बगल में शस्त्र छिपाकर रखता है कि किसी को मालूम न पड़े और जब चिडिया को देखता है तो तुरत ही उस शस्त्र को बगल में से निकाल कर उसको पकड़ लेता है, इस प्रकार यह मंत्री है । वह रास्ते में दुखी होकर रोते २ ऐसा पुकारता फिरता था। पुनः उस मंत्री ने अपने कर्मचारियों को बुलाकर कहा कि इस भद्रमित्र वणिक को मारपीट कर इस नगर से बाहर कर दो। तदनुसार उसको मारपीट कर बाहर निकाल दिया। तब वह भद्रमित्र घबड़ा कर रात्रि के समय नगर के समीप एक वृक्ष था उस पर चढ़ गया और प्रातः सूर्योदय होते ही उन्हीं पिछली बातों को दुहराने लगा। इस मंशा से कि यह शब्द राजा के कान में पहुँच जाय। राजा ने वह बातें सुन ली और कहने लगा कि यह तो पागल है ऐसे पुकारता है । मन्त्री जो बात कहता है वह सत्य है। . . उस सिंहसेन राजा की पटरानी रामदत्ता देवी ने विचार किया कि यह आदमी रोज एक ही बात को बोलता रहता है दूसरी कोई बात ही नहीं बोलता, यदि पागल होता तो और २ बातें भी कहता, रत्नों की बात हो क्यों करता है । वास्तव में यह पागल नहीं मालूम होता है । इसकी खोज करना चाहिये । कदाचित् यह बात सत्य भी हो सकती है। इस कारण उस व्यक्ति को बुला कर पूछना चाहिए, ऐसा विचार किया । एक दिन रानी ने भद्रमित्र को बुलाकर सारी बातें पूदी, और सारा हाल जानकर जवाब दिया कि तुम चले जाप्रो और जो शब्द तुम गेज रटते रहते हो वही पुकारते रहो। तत्पश्चात् रामदत्ता रानी ने एक दिन सिंहसेन महाराज के पास जाकर उपरोक्त सारा हाल कहते हुए कहा कि इस भद्रमित्र की बातों पर विचार करना चाहिए। इस पर सिंहसेन राजा ने जवाब दिया कि यह तो पागल है, ऐसे ही पुकारता है। इस पर रानी ने कहा कि इस पर कुछ निर्णय करना चाहिये । राजा ने रामदत्ता रानी से कहा कि इस पर तुम खुद ही विचार करो। रानी ने उत्तर दिया कि यदि आप आज्ञा देवें तो मै इसकी यथार्थ जांच पड़ताल करूं। मुझ में ऐसी शक्ति है। यदि आप प्राज्ञा देवें तो मैं मन्त्री के साथ जुमा खेलू और आप मेरे समीप में बैठे रहें । तब राजा ने प्राज्ञा दी कि जैसी आप की इच्छा हो वही करें। तदनंतर राजा ने सत्यघोष मन्त्री को बुलवाया। मन्त्री के आने पर रानी न उन के साथ कुछ हास्य विनोद की बातें की और राजा से कहा कि आप अपने मन्त्री की धू तक्रीड़ा की प्रशंसा करते हो । मैं ऐसा कहती हूँ कि मेरे समान ध तक्रीड़ा खेलने वाला संसार में कोई नहीं है। तब राजा ने कहा कि स्त्रियां ऐसा सोचती हैं कि जैसी क्रीड़ा करने में हमारी सामर्थ्य है वैसी पुरुषों में नहीं है। क्या मंत्रीजी! द्य तक्रीड़ा में सामर्थ्य नहीं रखते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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