SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरु मदर पुराण [ १२६ अर्थ-उस सिहपुरी नगरी में पद्मशख नाम का एक छोटा नगर था। जिसमें पमनिषि, शंखनिधि प्रादि नव प्रकार की निधि सहित कल्पवृक्ष के समान दान में दूर सुदक्ष नाम का एक वैश्य रहता था ॥२३॥ मद्रवन् दन मनक्कु विळक्क नाळ । सुद्र नम्मे नामम् सुमितिर । विकुणि पुर्व तोळिर् वेकनाळ । कपलंद मोर कामह वल्लिये ॥२३॥ अर्थ-उस सुदत्त वैश्य के घर में दीपक के समान प्रकाशमान, धनुष के समान भृकुटी बाली, लता के समान नेत्र, फूल के समान प्रत्यंत कोमल शरीर वाली सुमित्रा नाम की उसकी स्त्री थी। वह स्त्री महान चतुर गुणवान थी। कहा भी है: उच्च कुलीन स्त्रियों के लक्षण:साध्वी, शीलवती दया, सुमति दाक्षिण्य लज्जावती । तन्वो पापपराड्.मुखी स्थिरमतिमुग्धा प्रियालापिनी। देवे सद्गुरु-शास्त्र-बंधु-सज्जनरता यस्यास्ति भार्या गृहे । तस्यार्थागमं काम-मोक्ष-फलदाः कुर्वीत पुण्याप्रियाः ।। साध्वी, शीलवती, दयावती, वसुमती, चतुर, लज्जावती, तन्वी, पाप से पराङ्मुख मुग्धा, कम बोलने वाली, देव, शास्त्र, गुरु में भक्ति रखने वाली, बन्धु बांधवों से मित्रता रखने वाली ऐसी स्त्री जिसके घर में होती है उसको चारों पुरुषार्थ सहज ही में प्राप्त हो जाते हैं और सभी मंगलमय करने वाली होती है । ऐसी सुयोग्य वह सुमित्रा नाम की स्त्री उस वैश्य की थी।॥२३॥ अंपियु मगल वानु मुन्नाळिनाल । ईदुवे पयंवानगी विरुवरुन् । मैंदन पयंदार मदिपोल वळर । वंत मिनुवमै किड मागिनान् ॥२३२।। सुरैदकार मुगिल पोल सुदत्तनेन । दिव वडिल तोर बळित्तवन् । परंदुलाम पेयर् भद्रमित्रने । मरंदै तीर्थ लिनामेन प्रोदिनान् ॥२३३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy