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________________ - ~ AATM मेर मैदर पुराण गजावती मोर चण्डवती नाम की नदियों के पास लेजाकर विकट जंगल में पटक दिया। ।।१५० ।। सिंगै मुरुषिक विमानं शेल्लावगै नोक्कि । अंबसडात्ति नडुवे मुनिये यवनिट्ट.॥ मुन्स विनया लवनं मुनिय मुरुक्किनान । मुसि बिन इन मेले मुनियु मुरुक्किंडान् ॥१५१॥ अर्थ-तदनंतर वह विमान तो वहीं रह गया, और विद्युद्दष्ट्र विद्याधर ने संजयंत मुनि को देखा और देखते ही मन में क्रोधाग्नि उत्पन्न हो गई तथा उपसर्ग करने के अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचने के भाव उत्पन्न होकर उपसर्ग करना चालू कर दिया। उस समय संजयंत मुनि अपने पूर्वजन्म में किये हुए कर्म का उदय समझकर ध्यान में स्थिर रहे ।।१५१।। मत्तत्रादि वडिवाइ वीरन् मर्वत्त । कुंसकुरुगा मरिया प्रोडि कोनमावा ।। शशि तंडु तारै वाळ वेल तडियेदि । येशा बेरियाविळिया देळिया विडवोड़म ॥१५२॥ अर्थ-उस विद्यष्ट्र ने अपने विद्या के बल से दो रूप को धारण कर संयंत मुनि के वक्षस्थल में अपने तीनों दांतों से काट खाया और अनेक घाव कर दिये, और वहां से लौटकर आयुध दंड मुग्दल मादि शस्त्रों को लाकर उस मुनि को अनेक प्रकार के कष्ट दिये । तत्पश्चात् पुनः क्रूर व्याघ्र रूप धारण कर उनको डराने का प्रयत्न किया ।।१५।। चाळोई रिलंग बंकादंरव माइ बंदु तोंड । कोळरि येरुमार्ग कुक्कुद्र. कुलंगरोंड,॥ नीळेरि कोळ मंसुटुं निलं पिळददिर वारकुं। तोळिन तुनिष्पनेड.वाळिनै सुदि तोंड ॥१५३॥ अर्थ-प्रत्यंत तीक्ष्ण व प्रकाशमान दांतों को धारण करने वाले विद्युद्दष्ट्र ने उस मूनि को डराने के लिये सिंह सर्प आदि अनेक विकराल रूप धारण किये शूल, मुग्दल. दंड प्रादि शस्त्रों से प्रहार किया। तुम को मार डालेंगे, चीर डालेंगे ऐसे भयंकर शब्द बोलता हुआ वह विद्याधर मुनि के समीप गया ।।१५३।। पळलु मिळ विलंगु वेवा योरिया येळं त कत्रो । सुळलं वेन् कन्नवाय वेरुवं याय सुळल प्रोडुं । मळं यन तुरुगर पंग्या मलयडुत्तिड बंदु । मुळ्यवर् नपुंगुबेल्ला ऊनमु मोरंगु सैय्युं ॥१५४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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