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मेह मंदर पुराण
के अनुसार उस को गति मिलती है-ऐसा समझना चाहिये । इसलिये भव्य सम्यक् दृष्टि जोव यदि इस संसार दुःख से पार होना चाहता है तो भगवान जिनेन्द्र देव के कहे मार्ग में तिल मात्र भी शंका नहीं करनी चाहिये ।
सारांश यह है कि वेदनीय,नाम,प्रायु और गोत्र ऐसे चारों अघातिया कर्मों को नाम करके तीन लोक के भव्य जीवों के पूज्य होकर वैजयंत राजा ने सिद्ध लोक को प्राप्त किया।
॥ १३६॥ इस प्रकार वैजयंत का मोक्ष प्राप्ति नाम प्रथम अधिकार समाप्त हुआ।
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