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मेरु मंदर पुराण
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कुत्ता अपनी पूछ को हिला हिला कर भोजन खिलाने वाले उस महावत की खुशामद करता है और तब वह झूठन को प्रसन्नता से खा लेता है। उसी प्रकार मनपूर्वक संयम को न धारण करने वाले जीव परिग्रह को न त्याग करके पुनः उसका अंश व उसकी लालसा उत्पन्न होने से उसकी ओर चला जाता है । उस समय वह मोक्ष को उत्पन्न करने वाले श्रेष्ठ तपश्चरण मार्ग को त्याग करके जिस प्रकार खाए हुए झूठन को फेंक देते हैं या वमन की हुई वस्तु को पुनः ग्रहण करने की जो इच्छा करता है उसी प्रकार त्यागे हुए पंचेन्द्रिय विषय की पुनः इच्छा करके संसार में भ्रमण करके अत्यन्त दुख को भोगता है ।। १३६ ।।
नंजिने यामर्दमंड़े यंडवनयंदु पिन्न । तुंजुव दंजिन्दांड्र नांजय तुपित्तल पोलुं । पुंजिय पोरिइन् भोगम मांटिंडै सुळट, मेना ।
वंजिमुन्द्र रर्द भोग तरुंद व नाशैताने ॥१३७॥ पंचेन्द्रिय विषयों से युक्त भोगोपभोग वस्तु तीन लोक के सम्पूर्ण जीवों को घेरने के लिये कारण होती है । इस संसार दुख के कारणों से भयभीत होकर उन विषयादि राज्य पद को छोडकर तथा मुनि पद को धारण किए हुए संजयंत मुनि ने पुनः इस परिग्रह को धारण किया। जिस प्रकार एक मनुष्य ने विष को अमृत समझकर ग्रहण किया और उससे वह अनन्त दुख को प्राप्त होकर फिर उसका त्याग कर देता है तथा उस दुख को भूलकर फिर मूर्ख के समान उसी विष का ग्रहण करता है, ऐसी दशा उस संजयंत मुनि की हो गई ।।१३७।।
ऐंदले येखं तन वायें दुडन कलंदनंजिर् । ट्र बं मोर् कडिगयेल्लर जिनार ट्रोडरंदिडावा ।। मैवोरि यरवन तन वायू योंड्रिनालाय लोंजु । तुंजिना लनेग कालं तोडरदुं निड्रडुन गळ कंडिर् ।।१३८॥
। अत्यन्त जहरीलापांच फण वाला विषधर सर्प अपने पांचों मुखों से मनुष्य को काटता है और वह विष मनुष्य को अनेक प्रकार के असह्य दुःख देकर उसके प्राणों को नष्ट कर देता है, उस विष से वह प्राणी एक भव में नष्ट हो जाता है, पुनः उसको दुःख उत्पन्न नहीं होता है। किन्तु यह पंचेद्रिय नाम के विषय विषधर मनुष्य को भव भव में दुःख देने वाले हैं। श्री प्राचार्य गुण भद्रस्वामी ने आत्मानुशासन में कहा है -
राज्यं सौजन्ययुक्त श्रु तवदुरुतपः पूज्यमत्रापि यस्मात्, त्यक्त्वा राज्यं तपस्यन्नलघुरति लघुः स्यात्तपः प्रोह्य राज्यं ।। राज्यात्तस्मात् प्रपूज्यं तप इति मनसाऽऽलोच्य धीमानुद ग्रं, कुर्यादार्यः समग्रं प्रभवभयहरं सत्तपः पापभीरुः ।। राज्य के हाथ से दुष्टों का निग्रह होकर शिष्टों का पालन होता है । इसलिये राज्य
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