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________________ सामायिक सूत्र अंगड़ाई आदि लेना, (८) शरीर को मटकाना (8) शरीर का मैल उतारना, (१०) गृहस्थ के सीने-पिरोने आदि के काम करना, (११) नींदलेना, (१२)हाथ-पैर आदि दबवाना। सामायिक में उक्त ३२ दोषों का त्याग करना आवश्यक है । सामायिक की शुद्धि द्रव्याधुद्धि : सामायिक के लिए जो भी आसन, वस्त्र, रजोहरण या पूजनी, माला, मुखवस्त्रिका, पुस्तिका आदि साधन हैं, वे सब शुद्ध एवं साफ होने चाहिये । क्षेत्रशुद्धि : क्षेत्र का अर्थ स्थान है । अतः जिस स्थान पर बैठने से चित्त में चंचलता आती हो, स्त्री-पुरुषों के अधिक यातायात के पवित्र विचार-धारा टूटती हो, विषय-विकार उत्पन्न करने वाले शब्द तथा दृश्य होते हों, किसी प्रकार के क्लेश की संभावना हो, ऐसे ऐसे स्थान पर सामायिक नहीं करनी चाहिये । सामायिक का स्थान एकान्त तथा शान्त हो। कालशुद्धि : सामायिक का काल ऐसा हो, जब कि गृहस्थी की झंझटे न सताएं, चित्त खिन्न न हो, दूसरों के मन में तथा अपने मन में शीघ्रता, घबराहट या अरुचि न हो। इसके लिए प्रातःकाल और सायंकाल का समय ठीक है । स्थिर-चित्त का साधक कभी भी कर सकता है। भावशुद्धि : भावशुद्धि से अभिप्राय है-मन,वचन और शरीर की शुद्धि । मन, वचन एवं शरीर की शुद्धि का अर्थ है- इनकी एकाग्रता । जब तक मन, वचन और शरीर की एकाग्रता न हो, चंचलता न रुके, तब तक बाह्य विधि-विधान जीवन में विकाश नहीं ला सकते । Jain Education International For Private & Personal Use Only For www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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