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परिशिष्ट
सामायिक करने की विधि
शान्त तथा एकान्त स्थान में भूमि का अच्छी तरह प्रमार्जन कर, श्वेत तथा शुद्ध आसन लेकर, गृहस्थ-वेष पगड़ी, पजामा, कोट आदि उतार कर शुद्ध वस्त्रधोती एवं उत्तरासन धारण कर मुख पर मुख वस्त्रिका वाँध कर, पूर्व तथा उत्तर की ओर मुख करके बैठ कर या खड़े हो कर सामायिक सूत्र के पाठों को इस प्रकार से बोले
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नवकार तीन वार, सम्यक्त्वसूत्र = अरिहंतो, तीन बार, गुरु-गुण- स्मरणसूत्र = पंचिदिय, एकबार, गुरु-वन्दन सूत्र - तिक्खुत्तो तीन बार, [वन्दन कर आलोचना की आज्ञा लेना ] आलोचनासूत्र = इरियावही, एक बार, उत्तरीकरणसूत्र = तस्स उत्तरी, एक बार
आगारसूत्र = अन्नत्थ, एक बार,
[ पद्मासन आदि से बैठ कर या खड़े होकर ] कायोत्सर्ग =
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ध्यान करना ।
[ कायोत्सर्ग = ध्यान में ] लोगस्स, एक बार, नमो अरिहंताणं, पढ़ कर ध्यान खोलना,
गुरुवन्दनसूत्र = तिक्खुत्तो तीन बार,
[गुरू से, वे न हों, तो भगवान् की साक्षी से सामायिक की आज्ञा लेना ]
१. इरिया वही का ध्यान भी करते हैं ।
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