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गुणीजनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे, बने जहां तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे । होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे, गुण-ग्रहण का भाव रहे नित, दृष्टि न दोषों पर जावे ॥६॥ कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे, लाखों वर्षों तक जीऊँ या मृत्यु आज ही आ जावे। . अथवा कोई कैसा ही भय या लालच देने आवे, . तो भी न्यायमार्ग से मेरा कभी न पद डिगने पावे ॥७॥ होकर सुख में मग्न न फूले, दुख में कभी न घबरावे, पर्वत नदी स्मशान भयानक अटवी से नहीं भय खावे । रहे अडोल-अकंप निरंतर, यह मन दृढ़तर बन जावे, इष्ट-वियोग अनिष्टयोग में सहनशीलता दिखलावे ॥८॥ सुखी रहें सब जीव जगत् के कोई कभी न घबरावे, वैर, पाप, अभिमान छोड़ जग नित्य नये मंगल गावे । घर-घर चर्चा रहे धर्म की दुष्कृत दुष्कर हो जावे, ज्ञान-चरित उन्नत कर अपना मनुज जन्म फल सब पावे ॥६॥ ईति-भीति व्यापे नहिं जग में वष्टि समय पर हुआ करे, धर्मनिष्ठ होकर राजा भी न्याय प्रजा का किया करे । रोग-मरी दुभिक्ष न फैले प्रजा शांति से जिया करे, परम अहिंसा-धर्म जगत् में फैल सर्व-हित किया करे ॥१०॥ फैले प्रेम. परस्पर जग में मोह दूर पर रहा करे, अप्रिय कटुक कठोर शब्द नहीं कोई मुख से कहा करे। बन कर सब 'युगवीर' हृदय से धर्मोन्नति-रत रहा करें, वस्तुस्वरूप विचार खुशी से सब दुःख-संकट सहा करें ॥११॥
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