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श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र
परमेष्ठि-वन्दना
नमस्कार हो अरिहन्तों को, राग-द्वष रिपु-संहारी । नमस्कार हो श्री-सिद्धों को, अजर अमर नित अविकारी॥
नमस्कार हो आचार्यों को, संघ-शिरोमणि आचारी। नमस्कार हो उपाध्यायों को, अक्षय-श्रु त-निधि के धारी ॥
नमस्कार हो साधु सभी को, जग में जग-ममता मारी। त्याग दिये वैराग्य--भाव से, भोग-भाव सब संसारी ॥
पांच पदों को नमस्कार यह, नष्ट करे कलिमल भारी । मंगल-मूल अखिल मंगलमय, पाप-भीरु जनता तारी॥
-उपाध्याय श्री अमरमुनि
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