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________________ १४२ श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र बोलचाल में नवकारसी कहते हैं । नमस्कारिका में केवल दो ही आगार हैं - अनाभोग, और सहसाकार । (१) अनाभोग : इसका अर्थ है-अत्यन्त विस्मृति । प्रत्याख्यान लेने की बात सर्वथा भूल जाय और उस समय असावधानतावश कुछ खा-पी लिया जाय, तो वह अनाभोग-आगार की मर्यादा में रहता है। (२) सहसाकार : इसका अर्थ है-मेघ बरसने पर, अथवा दही आदि मथते समय अचानक ही जल या छाछ आदि का छींटा मुख में चला जाय । (२) पौरुषी-सूत्र : मूल : उग्गए सूरे पोरिसि पच्चक्खामि । चउन्विहं पि आहारं-असणं, पाणं, खाइम, साइमं । १. यह कथन आचार्य सिद्धसेन का है, जिसका भावार्थ है कि - मुहूर्त पूरा होने पर भी नवकारमन्त्र पढ़ने के बाद ही नमस्कारिका का प्रत्याख्यान पूरा होता है, पहले नहीं । यदि मुहूर्त से पहले ही नवकारमन्त्र पढ़ लिया जाय, तब भी नमस्कारिका पूर्ण नहीं होती हैं । नमस्कारिका के लिए यह आवश्यक है कि सूर्योदय के बाद एक मुहूर्त का काल भी पूर्ण हो जाय, और प्रत्याख्यान-पूर्तिस्वरूप नवकारमन्त्र का जप भी कर लिया जाय । इसी विषय को प्रवचनसाोद्धार की वृत्ति में आचार्य सिद्धसेन ने इस प्रकार स्पष्ट किया है-“स च ननस्कारसहितः पूर्णेऽपि काले नमस्कारपाठमन्तरेण प्रत्याख्यानस्यापूर्यमाणत्वात्, सत्यपि च नमस्कार-पाठे मूहर्ताभ्यन्तरे प्रत्याख्यानभंगात, ततः सिद्धमेतत् मुहूर्तमानकाल-नमस्कार-सहित प्रत्याख्यानमिति ।"-प्रत्याख्यानद्वार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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