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________________ सामायिक सूत्र व्याख्या जैन-परम्परा में नमस्कारमन्त्र का बड़ा ही गौरव पूर्ण स्थान है। इसका दूसरा नाम नवकारमन्त्र भी है। इसको पंचपरमेष्ठी मंत्र भी कहा जाता है । जिस व्यक्ति के मन में सदा नवकारमन्त्र के उदात्त भाव का चिन्तन चलता रहता है, संसार में उसका अहित कौन कर सकता है ? इतिहास साक्षी है कि इस महान् मन्त्र के स्मरण से शूली का सुन्दर सिंहासन बन गया है, और भयङ्कर विषधरसर्प फूल-माला में परिणत हो गया है । नवकार इह लोक में तथा पर-लोक में सर्वत्र सर्व सुखों का मूल है। नवकारमन्त्र मंगलरूप है । संसार में जितने भी मंगल हैं, यह उन सभी मंगलों में सर्वश्रेष्ठ मंगल है। क्योंकि यह द्रव्य मंगल नहीं, भावमंगल है। द्रव्यमंगल दधि-अक्षत आदि कभी अमंगल भी बन जाते हैं, किन्तु नवकारमन्त्र भावमंगल होने से कभी अमंगल नहीं होता। भावमंगल ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि के रुप में अनेक प्रकार का होता है । नवकारमन्त्र में व्यक्ति पूजा नहीं, गुण-पूजा का उदारभाव है । इस में जिन' महान् आत्माओं के गुणों का स्मरण किया गया है, वे दो रुपों में हैं-देव और गुरु। ____संसार-बन्धन के बीज-भूत-रागद्वेष का क्षय करने वाले तथा संसारी आत्माओं को भव-दुःखो से मुक्त कराने वाले अरिहंत भगवान देव हैं। आठ कर्मों से मुक्ति पाने वाले भव-बन्धनों से सदा के लिए सर्वथा विमुक्त सिद्ध भगवान् देव हैं। स्वयं पवित्र आचार का पालन करने वाले, एवं दूसरों से भी आचार का पालन करवाने वाले आचार्य गुरु हैं। द्वादशांगी जिन-वाणी के रहस्य के ज्ञाता, विमलज्ञान का दान करने वाले और मिथ्यात्व के अन्धकार को सम्यगज्ञान के प्रकाश से दूर करने वाले उपाध्याय गुरु हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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