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________________ व्याख्या २२. उपानविधि-परिमाण : पैर में पहनने के योरयें जूते, खड़ाऊँ स्लीपर आदि को उपानत् कहते हैं । उनकी मर्यादा करना । २३. वाहन-विधि-परिमाण वाहन का अर्थ है-सवारी । घोड़ा, उँट, हाथी, रथ, बैलगाड़ी, रेल, मोटर एवं साइकिल आदि । इनकी मर्यादा करना । २४. शयन विधि-परिमाण . सोने के प्रयोग में आने वाले पदार्थ शयन में आ जाते हैं; खाट, पाट, आसन विछौना, आदि, उपलक्षण से कुर्सी, मेज आदि भी ।उनकी मर्यादा करना। २५. सचित्त-विधि-परिमाण : सचित्त पदाथों का अधिक-से-अधिक त्याग करना, साधक जीवन का लक्ष्य है । परन्तु सम्पूर्ण रूप में जब तक सचित्त पदार्थो का त्याग न हो सके, तो उनकी मर्यादा करना । इसको सचित्त की मर्यादा करना । २६. द्रव्य-विधि-परिमाण : संसार में उपभोग्य पदार्थ अनन्त है । मनुष्य अपने सीमित जीवन में उन सभी का उपभोग नहीं कर सकता। ऐसा होना सम्भवित भी नहीं है । अतः द्रव्यौं (पदार्थो) की मर्यादा करनी चाहिए। इससे जीवन संयत बनता है । पूर्वोक्त २५ बोल के अतिरिक्त शेष सभी पदार्थ उक्त २६ वें बोल में आ जाते हैं। ____ छब्बीस बोलों में पहले से ग्यारह तक के बोल शरीर को स्वच्छ, स्वस्थ एवं सुशोभित करने वाले पदार्थो से सम्बन्धित हैं । बीच के दश खाने-पीने में आने वाले पदार्थो से सम्बन्धित हैं, और अन्त के शेष बोल शरीर आदि की रक्षा करने वाले पदार्थों से सम्बन्धित हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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