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________________ ब्याख्या ८. विलेपन.विधि-परिमाण : शरीर को शीतल तथा सुशोभित करने के लिए चन्दन, केशर एवं कुंकुम आदि के विलेपन का प्रयोग किया जाता था और आज भी पाउडर आदि का प्रयोग होता है । इस प्रकार के पदार्थों की मर्यादा करना । ६. पुष्प-विधि-परिमाण : ___ फूलों के प्रति मनुष्य का बड़ा ही आकर्षण रहा है । वह माला बना कर पहनता है, एवं गुलदस्ते सजा कर रखता है । अस्तु, कोन से फूल लेना और कौन-से न लेना और वह भी किस रूप में तथा कितनी मात्रा में लेना, इस प्रकार पुष्प की मर्यादा करना । १०. आभरण-विधि-परिमाण : प्राचीन युग में स्त्री और पुरूष दोनो ही अपने शरीर को अलंकृत करने के लिए आभूषणों का प्रयोग करते थे, और आज भी करते हैं। इस प्रकार आभूषणों की मर्यादा करना । ११. धूप-विधि-परिमाण : घर में, स्वास्थ्य की दृष्टि से वायु आदि की शुद्धि के लिए धूप एवं अगरबत्ती आदि का प्रयोग किया जाता है। ऐसे पदार्थी की मर्यादा करना। १२. पेय-विधि-परिमाण : पीने योग्य परार्थो को पेय कहते हैं । अतः दूध, चाय एवं रस आदि पदार्थो की मर्यादा करना । १३. भक्षण-विधि-परिमाण : ... खाने योग्य पदार्थों को भक्षण कहा जाता है । अतः मिष्ठान एवं पाक आदि पदार्थों की मर्यादा करना । १४. ओदन-वधि-परिमाण : ओदन चावल (भात) को कहते हैं । वे अनेक प्रकार के होते हैं। उनकी मर्यादा करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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