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________________ ६४ श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र ८. रस-वाणिज्य : ... रस का ब्यापार करना। यहाँ रस से मतलब मदिरा आदि से है। नशीले पदार्थो का ब्यापार नहीं करना चाहिए,। मदिरा पान से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है । दूध एवं घी आदि का ब्यापार रस-वाणिज्य में नहीं है । क्योंकि ये पदार्थ तो सात्विक हैं, जीवन का पोषण करते हैं । ६. विष-वाणिज्य : _ विष का व्यापार करना । संखिया अफीम, आदि जीवन नाशक पदार्थों की गणना विष में हैं । इसमें त्रसजीवों की हिंसा की सम्भावना बहुत अधिक है । १०. केश-वाणिज्य : केश का ब्यापार करना । यहाँ केशवाणिज्य से मतलब लक्षणा द्वारा केश वाली दासियों का खरीदना और बेचना है । इस प्रकार का व्यापार श्रावक के लिए वर्जित है। ११. यन्त्रपीलन-कर्म : __यन्त्र द्वारा पीलने का कर्म करना १ तिल का तेल और गन्ने आदि का रस पील कर बेचना । इसमें उसजीवों की हिंसा की संभावना है। १२. निल्लंच्छण-कर्म : पशुओं को खस्सी करके आजीविका करना । इस व्यवसाय से पशुओं को भयंकर वेदना होती है, और साथ में उनकी. नस्ल भी खराब होती है। १३. दवाग्नि-दापनिकाकर्म : वन दहन करना । भूमि को साफ करने में श्रम न करना पड़े, इसलिए वन में आग लगा देना। इसमें त्रसजीवों की बहुत अधिक हिंसा होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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