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-१७०] १०. लोकानुप्रेक्षा
१११ प्रकारेण शरीरं दशदण्डोच्चत्वं १० भवति । ज्योतिष्काः सूर्यचन्द्रग्रहनक्षत्रतारकाः पञ्चविधा ज्योतिष्कदेवाः सप्तधनुर्देहाः सप्तशरासनोत्सेधदेहा भवन्ति ॥ १६९ ॥ खर्गप्रैवेयकादिदेवानां देहोदयमाह
दुग-दुग-चदु-चदु-दुग-दुग-कप्प-सुराणं सरीर-परिमाणं ।
सत्तच्छे-पंच-हत्था चउरो अद्धद्ध-हीणा य ॥ १७०॥ [छाया-द्विकद्विकचतुश्चतुर्दिकद्विककल्पसुराणां शरीरपरिमाणम् । सप्तषट्पञ्चहस्ताः चत्वारः अर्धिहीनाः च ॥] द्विकद्विकचतुश्चतकिद्विककल्पसराणां प्रथमयुगल २ द्वितीययुगल २ तृतीयचतुर्थयुगल ४ पञ्चमषष्ठया अष्टमयुगल २ निवासिदेवानां शरीरप्रमाणं देहोदयं यथाक्रमं सप्त ७, षट्र ६, पञ्च ५, चत्वारो हस्ता ४, अर्धिहीनाश्च १३। तद्यथा । सौधर्मशानयोः देवाः सप्तहस्तोत्सेधशरीराः ७, सनत्कुमारमाहेन्द्रयोर्देवाः षड हस्तोदयदेहाः ६, ब्रह्मब्रह्मोतरलान्तवकापिष्ठेषु चतुर्षु देवाः पञ्चहस्तोत्सेधशरीराः ५, शुक्रमहाशुक्रशतारसहस्रारकल्पेषु चतुषु चतुःकरोदयशरीराः ४ । ततश्च अर्धाधहस्तहीनक्रमाः । आनतप्राणतयोः सुराः सार्धत्रिहस्तोदयशरीरा भवन्ति । तथा त्रैलोक्यसारे एवमप्युक्तं च । “दुसु दुसु चदु दुसु दुसु चदु तित्तिसु सेसेसु देहउस्सेहो। रयणीण सत्त छप्पण चत्तारि दलेण हीणकमा॥' द्वयो यो २ श्चतुर्घ ४ द्वयोईयो २ चतुर्षु त्रिनिषु ९ शेषे १४ ष्विति दशसु स्थानेषु देहोत्सेधो यथासंख्य सप्त ७ षट्' ६ पञ्च ५ चत्वारो ४ रत्नयः । ततः उपर्यधहस्तहीनक्रमो ज्ञातव्यः । सौ. ई. ह. ७, स. मा० ६, ब्र.अ. लां. का. ह. ५, शु. म. ह. ४, सतारसह. ५, आ. प्रा. आ० अच्यु. ह ३, प्र० त्रि, द्वि. त्रि. २, तृ. त्रि. ३, नवानुदिशपश्चानुत्तरदेवशरीराः, हस्त १॥१७॥
की ऊंचाई दस धनुष है । तथा किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत, पिशाच इन आठ प्रकारके व्यन्तर देवोंके शरीरकी ऊंचाई भी दस धनुष है । सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र, तारे इन पांच प्रकारके ज्योतिषी देवोंके शरीरकी ऊंचाई सात धनुष है ॥ १६९ ॥ अब वैमानिक देवोंके शरीरकी ऊंचाई कहते हैं। अर्थ-दो, दो, चार, चार, दो, दो कल्पोंके निवासी देवोंके शरीरकी ऊंचाई क्रमसे सात हाथ, छ: हाथ, पाँच हाथ, चार हाथ और फिर आधा आधा हाथ हीन है । भावार्थ-प्रथमयुगल, द्वितीययुगल, तृतीय और चतुर्थ युगल, पञ्चम और छठे युगल, सातवें युगल,
और आठवें युगलके निवासी देवोंके शरीरकी ऊंचाई क्रमसे सात हाथ, छः हाथ, पांच हाथ, चार हाथ और आधा आधा हाथ हीन है । अर्थात् सौधर्म और ऐशान खर्गके देवोंका शरीर सात हाथ ऊंचा है । सनत्कुमार और माहेन्द्र वर्गके देवोंका शरीर छः हाथ ऊंचा है । ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव
और कापिष्ठ वर्गमें देवोंका शरीर पांच हाथ ऊंचा है । शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार खर्गमें देवोंका शरीर चार हाथ ऊंचा है। आनत प्राणतमें ३॥ हाथका ऊंचा शरीर है और आरण अच्युतमें तीन हाथका ऊंचा शरीर है । त्रिलोकसारमें भी इसी प्रकार ( थोड़े भेदसे ) देवोंके शरीरकी ऊंचाई बतलाते हुए लिखा है-दो, दो, चार, दो, दो, चार, तीन, तीन, तीन, और शेषमें शरीरकी ऊंचाई क्रमसे ७ हाथ, छ: हाथ, पांच हाथ, चार हाथ और फिर आधा आधा हाथ कम जानना चाहिये। अर्थात् सौधर्म ईशानमें ७ हाथ, सनत्कुमार माहेन्द्रमें छ: हाथ, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर लान्तक कापिष्ठमें पांच हाथ, शुक्र महाशुक्रमे ४ हाथ, शतार सहस्रारमें ३३ हाथ, आनत प्राणत आरण अच्युतमें ३ हाथ, तीन अधोवेयकमें २३ हाथ, तीन मध्यप्रैवेयकमें दो हाथ, तीन उपरिमप्रैवेयकमें १३ हाथ और
१ग सत्तचपंच [सत्तछहपंच ?]।
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