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________________ -१२६] १०. लोकानुप्रेक्षा भवन्ति । अप्कायिका जीवा बादराः सूक्ष्माश्च भवन्ति । तेजस्कायिका जीवा बादराः सूक्ष्माश्च सन्ति । वायुकायिका जीवा बादराः सूक्ष्माश्च भवन्तीत्यर्थः । पञ्चमाः पृथिव्यादिसंख्यया पञ्चमत्वं प्राप्ताः वनस्पतयः द्विविधा द्विप्रकाराः। कुतः । साधारणप्रत्येकात्, साधारणवनस्पतिप्रत्येकवनस्पतिभेदात् । ये तु साधारणवनस्पतिकायिकास्ते नित्यचतुर्गतिनिगोदजीवाः बादराः सूक्ष्माश्च भवन्ति । ये प्रत्येकवनस्पतिकायिका जीवास्ते तु बादरा एव न तु सूक्ष्माः ॥ १२४ ॥ अथ साधारणानां द्विविधत्वं दर्शयति साहारणा वि दुविहा अणाइ-काला ये साइ-काला य । ते वि य बादर-सुहमा सेसा पुर्ण बायरा सबे ॥ १२५ ॥ [छाया-साधारणाः अपि द्विविधाः अनादिकालाः च सादिकालाः च । ते अपि च.बादरसूक्ष्माः शेषाः पुनरबादराः सर्वे ॥] साधारणनामकर्मोदयात् साधारणाः साधारणनिगोदाः, अपि पुनः, द्विविधा द्विप्रकाराः । ते के प्रकाराः । अनादिकालाश्च सादिकालाश्च नित्यनिगोदाश्चतुर्गतिनिगोदाश्च। च शब्दः समुच्चयार्थः। ते चिय त एव नित्यचतुर्गतिनिगोदजीवा बादरसूक्ष्माः बादरसूक्ष्मनामकर्मोदयं प्राप्नुवन्ति । पुनः शेषाः सर्वे प्रत्येकवनस्पतयः द्वीन्द्रियादयश्च सर्वे समस्ता बादरा एव ॥ १२५ ॥ अथ तेषां निगोदानां साधारणत्वं कुत इति चेदुच्यते साहारणाणि जेसिं आहारुस्सास-काय-आऊणि। ते साहारण-जीवा ताणंत-प्पमाणाणं ॥ १२६ ॥" [छाया-साधारणानि येषाम् आहारोच्छ्वासकायआयूंषि । ते साधारणजीवा अनन्तानन्तप्रमाणानाम् ॥] येषा साधारणनामकर्मोदयवशवर्यनन्तानन्तजीवानां निगोदानाम् आहारोच्छ्वासकायायूंषि साधारणानि सदृशानि समकालानि वे किसी आधारसे रहते हैं। किन्तु सूक्ष्मजीव बिना किसी आधारके समस्त लोकमें रहते हैं ॥ १२३ ॥ अर्थ-पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक जीव बादर भी होते हैं और सूक्ष्म भी होते हैं । पाँचवे वनस्पतिकायिकके दो भेद हैं-साधारण और प्रत्येक ॥ १२४ ॥ अब साधारण वनस्पतिकायके दो भेद बतलाते हैं । अर्थ-साधारण वनस्पति. काय के दो भेद हैं - अनादि साधारण वनस्पति काय और सादि साधारण वनस्पति काय । ये दोनों प्रकार के जीव बादर भी होते हैं और सूक्ष्म भी होते हैं। बाकी के सब जीव बादरही होते हैं । भावार्थ-साधारण नाम कर्म के उदय से साधारण वनस्पतिकायिक जीव होते हैं, जिन्हें निगोदिया जीव भी कहते हैं। उनके भी दो भेद हैं-अनादिकालीन और आदिकालीन । अनादिकालीन साधारण वनस्पति कायको नित्य निगोद कहते हैं और सादिकालीन वनस्पति कायको चतुर्गति निगोद कहते हैं। ये नित्य निगोदिया और चतुर्गति निगोदिया जीव भी बादर और सूक्ष्मके भेदसे दो प्रकारके होते हैं। जिन जीवोंके बादर नाम कर्मका उदय होता है वे बादर कहलाते हैं और जिन जीवोंके सूक्ष्म नाम कर्मका उदय होता है वे सूक्ष्म कहलाते हैं । दोनों ही प्रकारके निगोदिया जीव बादर भी होते हैं और सूक्ष्म भी होते हैं । किन्तु बाकीके सब प्रत्येक वनस्पति कायिक जीव और द्वीन्द्रिय आदि त्रस जीव बादर ही होते हैं ॥ १२५ ॥ अब यह बतलाते हैं कि वे निगोदिया जीव साधारण क्यों कहे जाते हैं । अर्थ-जिन अनन्तानन्त जीवोंका: आहार, श्वासोच्छास, शरीर और आयु साधारण होती है उन जीवोंको साधारणकायिक जीव कहते हैं । भावार्थ-जिन अनन्तानन्त निगोदिया जीवोंके साधारण नाम कर्मका उदय होता है उनकी १लग अणाय । २०मस कालाइ साइ कालाई। ३ ब ते पुणु बादर, ते चिय। ४ब पुणु। ५. युगडं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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