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________________ (३४) अन्ये दशोपयोगाः स्युः । दंसणेत्यादि, अवहिदुगे अवधिदर्शने केवलदर्शने च दर्शनाश्रितज्ञानोक्ता अवधिकेवलज्ञानोक्ताः । तत् कथं ? येऽवधिज्ञाने कथितास्ते सप्त मतिश्रुतावधिमनः पर्ययज्ञानोपयोगाश्चत्वारश्चक्षुरचक्षुर वधिदर्शनोपयोगास्त्रयोऽवधिदर्शने भवन्तीत्यर्थः । यौ केवलज्ञाने केवलज्ञानदर्शनोपयोगौ प्रोक्तौ तौ केवलदर्शने भवतः। इति दर्शनमार्गणा ।। ३६॥ अन्वयार्थ ३६ - ( जहखादे) यथाख्यात संयम में (पणणाणदंसणचउ ) पांच ज्ञान चार दर्शन ये नौ उपयोग होते हैं (चक्खुदंसणजुगेसु) चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन में (गयकेवलदुग) केवलज्ञान और केवलदर्शनोपयोग को छोड़कर शेष दस उपयोग होते हैं। (अवहिदुगेदंसण) अवधिदर्शन एवं केवलदर्शन में ( गदणाणुत्ता) अवधि ज्ञान और केवलज्ञान में कहे हुए उपयोगो के समान उपयोग जानना चाहिए। --- भावार्थ- यथाख्यात संयम में मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय एवं केवलज्ञान ये पांच ज्ञानोपयोग चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवलदर्शनोपयोग ये चार दर्शनोपयोग इस प्रकार नौ उपयोग होते हैं । दर्शन मार्गणा में चक्षु दर्शन और अचक्षु दर्शन में केवल ज्ञानोपयोग और केवलदर्शनोपयोग को छोड़कर शेष दस उपयोग होते है । अवधिदर्शन में मति, श्रुत, अवधि एवं मनः पर्यय ज्ञानोपयोग तथा चक्षु, अचक्षु और अवधि दर्शनोपयोग इस प्रकार सात उपयोग होते हैं। तथा केवल दर्शनोपयोग में केवलज्ञानोपयोग और केवल दर्शनोपयोग ये दो उपयोग होते हैं लेश्या, भव्यत्व, संज्ञी और आहार मार्गणा को तीन गाथाओं द्वारा कहते हैंमणपज्जवकेवलदुगहीणुवओगा हवंति किण्हतिए । व दस तेजाजुयले भव्वे वि य दुदस सुक्काए ।। ४० ।। मनःपर्ययकेवलद्विकहीनोपयोगा भवन्ति कृष्णत्रिके । नव दश तेजोयुगले भव्येऽपि च द्वादश शुक्लायां ॥ मण इत्यादि । किण्हतिए- कृष्णनीलकापोतलेश्यात्रिके मनःपर्यय केवलज्ञानकेवलदर्शनैस्त्रिभिर्हीना अन्ये नवोपयोगा भवेयुः । दस तेजाजुयले --- पीतपद्यलेश्ययोर्द्वयोः केवलज्ञानदर्शनवर्जा अन्ये दशोपयोगाः सन्ति । भव्वे वि यदुदस सुक्काए --- शुक्ललेश्यायां द्वादशोपयोगाः स्युः । इति लेश्यामार्गणा । भव्यजीवेऽपि च द्वादशोपयोगाः सन्ति ॥ ४० ॥ 1 अन्वयार्थ ४०- ( किण्हतिए) कृष्ण आदि तीन लेश्याओं में (मणपज्जवकेवलदुगहीणुवओगा) मनःपर्यय ज्ञान, केवलज्ञान और केवलदर्शनोपयोग को छोड़कर (णव) नौ उपयोग होते है (तेजाजुयले) पीत और पद्म लेश्या में (दस) दस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002711
Book TitleSiddhantasara
Original Sutra AuthorJinchandra Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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