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________________ (२६) गति एवं इन्द्रिय मार्गणा में उपयोग अन्वयार्थ ३२.- (गइचउक्कए) चारों गतियों में क्रमशः (णव णवबारस णव) नौ, नौ, बारह एवं नौ उपयोग होते हैं। (इगिबितियक्खे) एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय के (तिण्णि)तीन उपयोग (चउरक्खे चउ उवओगा) चतुरिन्द्रिय के चार उपयोग और (पंचखे बारह) पंचेन्द्रियों के बारह उपयोग(हुति) होते हैं। भावार्थ- गतिमार्गणा में नरकगति, तिर्यंच और देव गति में तीन कुज्ञानोपयोग (कुमति, कुश्रुत, कुवधि) और सम्यज्ञानोपयोग (मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधि ज्ञान) तीन दर्शनोपयोग (चक्षु, अचक्षु एवं अवधि)। इस प्रकार नौ उपयोग होते हैं मनुष्यगति में तीन कुज्ञान, पांच सम्यग्ज्ञानोपयोग एवं चार दर्शनोपयोग इस प्रकार बारह उपयोग होते है। इन्द्रिय मार्गणा में- एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय जीवों के कुमति ज्ञानोपयोग, कुश्रुतज्ञानोपयोग तथा अचक्षुदर्शनोपयोग इस प्रकार तीन उपयोग चतुरिन्द्रियों में एकेन्द्रियादि में कहे गये तीन और चक्षुदर्शनोपयोग इस प्रकार चार उपयोग तथा पंचेन्द्रियों में मनुष्यगति के समान बारह उपयोग होते हैं। चार गाथाओं में काय, योग, वेद एवं कषाय मार्गणा में उपयोग कहते हैं कुमई कुसुयं अचक्खू तिण्णि वि भूआउतेउवाउवणे। बारस तसेसु मणवचिसचाणुभएसु बारस वि।। ३३ ।। कुमतिः कुश्रुतं अचक्षुः त्रयोऽपि भ्वप्तेजोवायुवनस्पतिषु। द्वादश त्रसेषु मनोवचनसत्यानुभयेषु द्वादशापि।। कुमइ इत्यादि। कुमतिज्ञानं कुश्रुतज्ञानमचक्षुर्दर्शनमेते त्रयोपयोगाः, भू इति पृथिवीकाये अप्काये तेजःकाये वायुकाये वनस्पतिकाये च भवन्ति। बारस तसेसुइति, त्रसकायेषु द्वादशोपयोगा भवन्ति। इति कायमार्गणा। मणवचिसच्चाणुभएसु बारस वि- इति, सत्यमनोयोगेऽनुभयमनोयोगे सत्यवचनयोगेऽनुभयवचनयोगे एतेषु चतुर्षु योगेषु द्वादशैव उपयोगा भवन्ति ॥३३॥ ___गाथार्थ ३३ - (भू आउतेउवाउवणे) पृथ्वी, जल, तेज, वायु, एवं वनस्पति कायिकों के (कुमई, कुसुयं, अचक्खू)कुमति, कुश्रुत और अचक्षु दर्शनोपयोग ये (तिण्णिवि) तीनो उपयोग तथा (तसेसु) त्रसों में (बारह) बारह उपयोग होते हैं ।(मणवचिसच्चाणुभएसु) सत्यमनोयोग, सत्यवचन योग, अनुभय मनोयोग, अनुभय वचन योग इन चार योगों में (बारस वि) बारह बारह उपयोग होते हैं। ___ दस केवलदुग वज्जिय जोगचउक्के दुदसय ओराले। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002711
Book TitleSiddhantasara
Original Sutra AuthorJinchandra Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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