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(भव्वे) भव्य जीवों में (सव्वे) सभी गुणस्थान (अभव्वे) अभव्य जीवों में (मिच्छं) मिथ्यात्व एक गुणस्थान (खाइयतिए) क्षायिक, क्षयोपशम और उपशम सम्यग्दर्शन में (इगिदह चदु अड्) ग्यारह, चार, आठ इस प्रकार यथाक्रम गुणस्थान जानना चाहिए। (तहऽण्णेसु) मिथ्यात्व, सासादन और मिश्र इन तीनों में (णिय इक्कं) वही वही गुणस्थान होता है।
भावार्थ- शुक्ल लेश्या में मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर सयोग केवली पर्यन्त तेरह गुणस्थान होते हैं। इस प्रकार लेश्यामार्गणा में गुणस्थान का निरूपण हुआ। भव्य जीव में मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर अयोगकेवली तक समस्त चौदह गुणस्थान होते हैं। अभव्यजीव में एक मिथ्यात्व गुणस्थान होता है। इस प्रकार भव्य मार्गणा पूर्ण हुई। क्षायिक सम्यक्त्व में चतुर्थ से लेकर सिद्ध पर्यन्त अर्थात् अयोगकेवली जिन गुणस्थान तक ११ गुणस्थान होते हैं। वेदक सम्यक्त्व में अविरत गुणस्थान को आदि लेकर सप्तम गुणस्थान तक चार गुणस्थान जानना चाहिए। मिथ्यात्व में एक मिथ्यात्व गुणस्थान सासादन सम्यक्त्व में एक सासादन सम्यग्दृष्टि और मिश्र सम्यक्त्व में एक मिश्र गुणस्थान होता है। इस प्रकार सम्यक्त्व मार्गणा पूर्ण हुई।
सण्णिअसण्णिसु बारस दो पढमादितिदस पण गुणा कमसो। आहारअणाहारे एसु इदि मग्गणठाणएसु गुणा।। २०॥
संश्यसंज्ञिषु द्वादश द्वे प्रथमादित्रयोदश पंच गुणाः क्रमशः।
आहारकानाहरके एतेषु इति मार्गणस्थानेषु गुणाः।। सण्णिअसण्णिसु बारस दो- अत्र यथासंख्यालंकारः। संज्ञिजीवे प्रथमादिक्षीणकषायपर्यन्तानि द्वादशगुणस्थानि स्युः। असण्णिसु- असंज्ञिजीवेषु द्वौ गुणौ मिथ्यात्वसासादने भवत इत्यर्थः। इति संज्ञिमार्गणा। पढमादितिदस-पणगुणा कमसो आहारअणाहारे- कमसो-- इति, अनुक्रमेण यथासंख्यतया, आहारके प्रथममिथ्यात्वादिसयोगान्तानि त्रयोदश--गुणस्थानानि सन्ति। अनाहारके पण गुणापंचगुणस्थानानि भवन्ति मिथ्यात्वसासादनाविरतिसयोगकेवल्ययोगकेवलिनामानि पंचगुणस्थानानि स्युः। अनाहारके एतानि पंचगुणस्थानानि कथं संभवंतीत्यारेकायामाह- मिथ्यात्वसासादनाविरतेषु त्रिषु जीवानां विग्रहगत्यां सत्यां अनाहरकत्वं संभवति। सयोगकेवलिनि समुद्धातापेक्षया ज्ञेयं। तथा चोक्तं . विग्गहगइमावण्णा
समुग्घयकेवलिअजोगिजिणा। सिद्धा य अणाहारा सेसा आहारिया जीवा॥ १॥
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