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________________ अर्थ - हे बुद्धिमान् ! सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र ये मोक्ष के कारण जानों। वह मोक्ष मार्ग व्यवहार और निश्चय के भेद से दो प्रकार का है । तचरुई सम्मत्तं तचाणं बोहणं तु सण्णाणं ।। असुहे सुहेच जाण णिवित्तिपवित्तिय सम्मचारित्त।। 192|| अन्वय - तच्चरूई सम्मत्तं तच्चाणं बोहणं तु सण्णाणं असुहे णिवित्ति सुहे च पवित्ति य सम्मचारित्तं जाण। अर्थ – तत्त्वों की रूचि सम्यग्दर्शन है, तत्त्वों का जानना सम्यग्ज्ञान तथा अशुभ से निर्वृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति को सम्यग्चारित्र जानों । तं सम्मत्तं दुविहं तिविहं च हवेइ सुत्तणिद्दिटुं । सम्मण्णाणं पंचवियप्पं मइआदिभेदेण ||193|| अन्वय- सुत्तणिद्दिठं तं सम्मत्तं दुविहं तिविहं च हवेइ सम्मण्णाणं मइआदिभेदेण पंचवियप्पं । अर्थ – सूत्र से निर्दिष्ट वह सम्यक्त्व दो प्रकार अर्थात् निसर्गज और अधिगमज तीन प्रकार अर्थात् औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक हैं । सम्यग्ज्ञान मति ज्ञान आदि के भेद से पाँच प्रकार का है। वदसमिदिगुत्तिरूवं चरियं तेरस हु एस ववहारा । णिचयदो णिय अप्पा तत्तियमइओमुणेयव्वो ||194|| अन्वय - हु वदसमिदिगुत्तिरूवं एस तेरस ववहारा चरियं णिच्चयदो णिय अप्पा तत्तियमइओ मुणेयव्यो। अर्थ - पांच व्रत, पांच समिति और तीन गुप्तियाँ ये तेरह प्रकार का चारित्र व्यवहार चारित्र है तथा निश्चय नय से अपनी आत्मा में तन्मय होना ही निश्चय चारित्र जानना चहिए । इति मोक्षहेतुस्वरूपनिरूपणम् । ( 58 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002708
Book TitleParamagamsara
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherVarni Digambar Jain Gurukul Jabalpur
Publication Year2000
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, H000, H999, P000, & P999
File Size3 MB
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