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अर्थ - औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र और कार्मण इस प्रकार काय योग सात प्रकार का होता है ।
णरतिरिये ओराल दु णिरये देवे वियुव्वणा जुगलं । छट्टगुणे आहार दु चादुग्गदिगे हु कम्मइयं ||157 ||
अन्वय - हु णरतिरिये ओराल दु णिरये देवे वियुव्वणा जुगलं आहार दु छट्टगुणे दु कम्मइयं चादुग्गदिगे ।
अर्थ - निश्चय से मनुष्य और तिर्यंच गति में औदारिक काययोग, औदारिकमिश्रकाययोग । नरक गति और देवगति में वैक्रियिक काययोग और वैक्रियिकमिश्रकाययोग छट्ठे गुणस्थानवर्ती प्रमत्तसंयत मुनिराज के आहारक, आहारकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग चारों गतियों में होता है ।
एदे जोगा दुविहा असुहेदरभेददो दु पत्तेगं । आहारभयपरिग्गहमेहुणसण्णा हु असुहमणं ॥ 158||
अन्वय - एदे पत्तेगं जोगा हु असुहेदरभेददो हु दुविहा आहारभयपरिग्गहमेहुणसण्णा असुहमणं ।
अर्थ - ये प्रत्येक योग शुभ और अशुभ के भेद से दो प्रकार के हैं। आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार संज्ञाओं रूप अशुभ मन हैं ।
असुहतिलेस्साभावो पंचेंदियविसयलोलपरिणामो । ईसाविसादहिंसापहुदिसु परिणाममसुहमणं ||159||
अन्वय - असुहतिलेस्साभावो पंचेंदियविसयलोलपरिणामो ईसाविसादहिंसापहुदिसु परिणाममसुहमणं ।
अर्थ - तीन अशुभ लेश्या रूप भाव, पंचेन्द्रिय विषयों की लोलुपता रूप परिणाम ईर्षा, विषाद और हिंसादि परिणाम अशुभ मन हैं।
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