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________________ पक्षों का एक मास, दो महीनों की एक ऋतु, तीन ऋतुओं का एक अयन और दो अयनों का एक वर्ष जानना चाहिये। पणवरिसा जुगसण्णा तज्जुगलं दस वरिस तत्तो दु। दसदसगुणसदवरिसो सहस्सदससहस्सलक्खं तु ||37।। लक्खं चउसीदिगुणं पुव्वंग होदि तं पि गुणिदव्वं । चदुसीदीलक्खेहिं पुव्वं णामं समुद्दिटुं ।।38।। अन्वय- पणवरिसा जुगसण्णा तज्जुगलं दस वरिस तत्तो दु दसदसगुणसदवरिसो सहस्सदससहस्सलक्खं तु लक्खं चउसीदिगुणं पुवंगं होदि तं पि गुणिदव्वं चदुसीदीलक्खेहिं पुव्वं णामं समुद्दिढें । अर्थ- पाँच वर्षों की युग संज्ञा, दो युगों के दस वर्ष होते हैं। इन दस वर्षों को दस से गुणा करने पर शत (सौ) वर्ष और शत वर्ष को दस से गुणा करने पर सहस्र (हजार) वर्ष, सहस्र वर्ष को दस से गुणा करने पर दस-सहस्रवर्ष और दस- सहस्र वर्ष को दस से गुणा करनेपर लक्ष (लाख) वर्ष , एक लाख वर्ष को 84 से गुणा करने पर एक पूर्वाङ्ग तथा 84 लाख वर्ष अर्थात् एक पूर्वाङ्ग को 84 लाख से गुणा करने पर जो राशि प्राप्त होती है वह पूर्व कहलाती है। उक्तं च - 6. * "पुव्वस्स दुपरिमाणं सदरिंखलु कोडिसदसहस्साइं। छप्पण्णं च सहस्सा बोद्धव्वा वासगणणाए॥" - अर्थ- एक पूर्व कोटि का प्रमाण सत्तर लाख करोड़ और छप्पन हजार करोड़ वर्ष जानना चाहिये। (सर्वार्थसिद्धि 3 - 31) इच्चेवमादिगो जो ववहारो वण्णिदो समासेण । तस्सेव य वित्थारं जिणुत्तसत्थम्हि जाणाहि।।3।। अन्वय - इच्चेवमादिगो जो ववहारो समासेण वण्णिदो य तस्सेव वित्थारं जिणुत्तसत्थम्हि जाणाहि । 6.* (1) वासकोड़ीण ( 12 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002708
Book TitleParamagamsara
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherVarni Digambar Jain Gurukul Jabalpur
Publication Year2000
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, H000, H999, P000, & P999
File Size3 MB
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