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मधुकर, शलभ, पतंग, दंशमशक और मक्खी आदि जातियोंका भेद नहीं हो सकता है । (ET. 6/68)
पंचेन्द्रियजातिनामकर्म
जस्स कम्मस्स उदएण जीवाणं पंचिंदियभावेण समाणत्त होदि तं पंचिं● दियजादिणामकम्मं ।
जिस कर्म के उदय से जीवों की पंचेन्द्रियपनेकी अपेक्षा समानता होती है, वह पंचेन्द्रियजादिनाम कर्म है । (T. 6/68) यतः स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रेन्द्रियवन्तो जीवा भवन्ति सा पञ्चेन्द्रि यजातिः ।
जिसके कारण जीव स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु तथा श्रोत्रेन्द्रिय युक्त होता है, वह पंचेन्द्रिय जाति नाम कर्म है । (क.प्र./20) विशेष - पंचेन्द्रियजातिनामकर्म अनेक प्रकारका है, अन्यथा, देव, नारकी, सिंह, अश्व, हस्ती, वृक, व्याघ्र और चीता आदि जातियोंका भेद बन नहीं सकता है । (ET. 6/68)
शरीरनामकर्म
जस्स कम्मस्स उदएण ओरालिय - वेउब्विय- आहार- तेजा कम्मइय सरीरपरमाणू जीवेण सह बंधमागच्छंति तं कम्मं सरीरणामं । जिस कर्म के उदय से औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण शरीर के परमाणु जीव के साथ बंध को प्राप्त होते हैं, वह शरीर नामकर्म है। (ध. 13 / 363) जस्स कम्मस्स उदएण आहारवग्गणाए पोग्गलक्खंधा तेजा कम्मइयवग्गण पोग्गलक्खंधा च सरीर जोग्गपरिणामेहि परिणदा संता जीवेण संबज्झंति तस्स कम्मक्खंधस्स सरीरमिदि सण्णा ।
जिस कर्म के उदय से आहार वर्गणा के पुद्गल स्कंध तथा तैजस और कर्मण वर्गणा के पुद्गल स्कंध शरीर योग्य परिणामों के द्वारा परिणत होते हुए जीव के साथ सम्बद्ध होते हैं उस कर्म स्कंध की 'शरीर' यह संज्ञा है ।
(ध. 6 / 52 )
यदुदयादात्मनः शरीरनिर्वृत्तिस्तच्छरीरनाम।
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