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________________ शरीरबंधननाम, शरीरसंघातनाम, शरीर संस्थान नाम, शरीर अंगोपांगनाम, शरीर संहनननाम, वर्णनाम, गंधनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, आनुपूर्वीनाम, अगुरुलघुनाम, उपघातनाम परघातनाम उच्छवास नाम, आतापनाम, उद्योतनाम, विहायोगतिनाम, त्रसनाम, स्थावरनाम, बादरनाम, सूक्ष्मनाम पर्याप्त नाम, अपर्याप्त नाम, प्रत्येक शरीरनाम, साधारण शरीर नाम, स्थिरनाम, अस्थिरनाम, शुभनाम, अशुभनाम, सुभगनाम, दुर्भगनाम, सुस्वरनाम, दुःस्वरनाम, आदेयनाम, अनादेयनाम, यशःकीर्तिनाम, अयशःकीर्तिनाम, निर्माणनाम और तीर्थकरनाम ये नामकर्म की व्यालीस पिंडकृतियां हैं। (ध. 6 / 50 ) गतिनामकर्म रियतिरिक्खमणुस्सदेवाणं णिव्वत्तयं कम्मं तं गदिणामं । जो नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव पर्याय का बनानेवाला कर्म है, वह गतिनामकर्म है । (ध. 13 / 363) जम्हि जीवभावे आउकम्मादो लद्वावद्वाणे संते सरीरादियाई कम्माझ्मुदयं गच्छंति सो भावो जस्स पोग्गलक्खंधस्स मिच्छत्तादिकारणेंहि पत्तस्स कम्मभावस्स उदयादो होदि तस्स कम्मक्खंधस्स गति त्ति सण्णा । जिस जीव भाव में आयुकर्म से अवस्थान के प्राप्त करने पर शरीर आदि कर्म उदय को प्राप्त होते हैं वह भाव मिथ्यात्व आदि कारणों के द्वारा कर्म भाव को प्राप्त जिस पुद्गल स्कंध के उदय से उत्पन्न होता है, उस कर्म स्कंध की 'गति' यह संज्ञा है । (ध. 6 / 50 ) यदुदयादात्मा भवान्तरं गच्छति सा गतिः । जिसके उदय से आत्मा भवान्तर को जाता है वह गति है । (स. सि. 8 / 11 ) गतिनामकर्म के भेद जं तं गतिणामकम्मं तं चउव्विहं णिरयगदिणामं तिरिक्खगदिणामं मणु सगदिणामं देवगदिणामं चेदि । जो नामकर्म है वह चार प्रकार का है - नरकगतिनामकर्म, तिर्यग्गतिनामकर्म, मनुष्यगतिनामकर्म और देवगतिनामकर्म । (ध. 6/67) नरकगति नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण णिरयभावो जीवाणं होदि, तं कम्मं णिरयगति Jain Education International (51) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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