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नरकायु सामान्य के बन्ध योग्य परिणाम बह्वारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः। निःशीलवतत्वं च सर्वेषाम् । बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रहपने का भाव नरकायु का आसव है | शीलरहित और व्रतरहित होना सब आयुओं के आसव का कारण है।
(त.सू. 6/15,19) हिंसादिक्रूरकर्माजसप्रवर्तनपरस्वहरणविषयातिगृद्धिकृष्णलेश्याभिजातरौद्रध्यानमरणकालतादिलक्षणोनारकस्यायुष आसवोभवति। हिंसादिक्रूर कार्यों में निरन्तर प्रवृत्ति, दूसरे के धनका हरण, इन्द्रियों के विषयों में अत्यन्त आसक्ति, तथा मरने के समय कृष्णलेश्या और रौद्रध्यान आदिका होना नरकायु के आसव हैं।
(स.सि. 6/15) आउस्स बंधसमए सिलोव्व सेलो वेणूमूले य । किमिरायकसायाणं उदयम्मि बंधेदि णिरयाउ ॥ किणअहायणीलकाऊणुदयादोबंधिऊण णिरयाऊ। मरिऊण ताहिं जुत्तो पावइ णिरयं महाघोरं ॥ आयु बन्ध के समय सिल की रेखा के समान क्रोध, शैलके समान मान, बाँसकी जड़के समान माया, और कृमिरागकेसमान लोभ कषायकाउदय होने पर नरक आयु का बन्ध होता है । कृष्ण नील अथवा कापोत इन तीन लेश्याओं का उदय होने से नरकायुकोबांधकर और मरकर उन्हीं लेश्याओं से युक्त होकर महाभयानक नरकको प्राप्त करता है। (ति.प. 2/295,294) उत्कृष्टमानताशैलराजीसदृशरोषता । मिथ्यात्वं तीव्रलोभत्वं नित्यं निरनुकम्पता॥ अजसं जीवधातित्वं सततानृतवादिता । परस्वहरणं नित्यं नित्यं मैथुनसेवनम् ॥ कामभोगाभिलाषाणां नित्यं चातिप्रवृद्धता । जिनस्यासादनं साधुसमयस्यच भेदनम् ॥ मार्जारताम्रचूड़ादिपापीयःप्राणिपोषणम् । नैःशील्यं च महारम्मपरिग्रहतया सह ॥ कृष्णलेश्यापरिणतं रौद्रध्यानं चतुर्विधम् । आयुषो नारकस्येति भवन्तयासवहेतवः ॥ कठोर पत्थर के समान तीव्रमान, पर्वतमालाओं के समान अभेद्य क्रोध रखना,
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