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________________ नरकायु जं कम्मं णिरयभवं धारेदितं णिरयाउअंणाम। जो कर्म नरक भव को धारण कराता है, वह नारकायुकर्म है। (ध. 13/362) जेसिं कम्मक्खंधाणमुदएणजीवस्य उद्धगमणसहावस्सणेरइयभवम्मि अवट्ठाणं होदि तेसिंणिरयाउवमिदिसण्णा। जिन कर्म स्कन्धों के उदय से ऊर्ध्वगमन स्वभावाले जीव का नारक भव में अवस्थान होता है, उन कर्म स्कंधों की 'नरकायु' यह संज्ञा है। (ध. 6/48) तत्रयन्नारकशरीरे आत्मानं धारयति तन्नारकायुष्यम्। जो आत्मा को नारक शरीर में धारण कराता है, वह नरकायुष्य है। (क.प्र./16) नरकेषु तीव्रशीतोष्णवेदनेषु यन्निमित्तंदीर्घजीवनं तन्नारकम्। तीव्र शीत और उष्ण वेदनावाले नरकों में जिसके निमित्त से दीर्घ जीवन होता है । वह नारक आयु है। (स.सि. 8/10) तिर्यंचायु जं कम्मं तिरिक्खभवं धारेदितं तिरिक्खाउअंणाम । जो कर्म तिर्यंश्च भव को धारण कराता है, वह तिर्यंचायु कर्म है।(ध. 13/362) जेसिं कम्मक्खंधाणमुदएण तिरिक्खभवस्स अवट्ठाणं होदितेसिं तिरिक्खाउअमिदिसण्णा। जिन कर्म स्कंधों के उदय से तिर्यंच भव में जीव का अवस्थान होता है, उन कर्म स्कंधों की 'तिर्यगायु' यह संज्ञा है। (ध. 6/49) यत्तिर्यक्छरीरे जीवं धारयति तत्तिर्यगायुष्यम्। जो जीव को तिर्यंच-शरीर में धारण कराता है, वह तिर्यगायुष्य है। (क.प्र./16) क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंसमशकादिविविधवेदनाविधेयीकृतेषुतिर्यक्षु यस्योदयाद्वसनं भवति तत्तैर्यग्योनमायुरवगन्तव्यम्। भूख, प्यास, शीत, उष्ण, दंशमशक आदि विविधवेदनाओं के स्थान स्वरूप तिर्यंचों में जिसके उदय से रहना पड़ता है वह तिर्यंच आयुकर्म है। . (त.वृ. भा.8/10) nternational Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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